Atmadharma magazine - Ank 366
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: ४८ : आत्मधर्म : चैत्र : २५००
अहा, आजे सोनगढमां माणसोनी अपार भीड हती. भगवाननी प्रतिष्ठानी
खुशालीमां “गाम–धूमाडो बंध” ना ढोल पीटाई रह्या हता. प्रभुनी प्रतिष्ठा पछी पांचे
परमागमोनुं उद्घाटन, कुंदकुंदप्रभुना चरणोनी स्थापना, १९ कलश तथा ध्वजारोहण
थतां परमागममंदिर अद्भुतपणे शोभी ऊठ्युं. उज्वळ परमागम–मंदिर जाणे के स्वयं
पोकार करी रह्युं छे के अहो जीवो! जगतना सर्वोत्कृष्ट देव, जगतना सर्वोत्कृष्ट गुरु ने
जगतना सर्वोत्कृष्ट शास्त्र अहीं मारी अंदर बिराजे छे...तेथी हुं पण सर्वोत्कृष्ट अने
उज्वळ छुं. अहीं आवो, ने आ उत्कृष्ट देव–गुरु–शास्त्रने ओळखीने तमारा ज्ञानमां
तेने बिराजमान करो, एटले तमारा परिणाम पण उज्वळ (सम्यक्त्वादिरूप) थशे.
आवा उज्वळ परिणामना हेतुभूत आ पंचकल्याणक मंगल महोत्सव जयवंत वर्तो.
बपोरे प्रवचन बाद भव्य रथयात्रा नीकळी हती, ने संपूर्ण शांत, हर्ष–
उल्लासभर्या आनंदमय वातावरण वच्चे, निर्विघ्नपणे गुरुप्रतापे मंगल महोत्सव पूर्ण
थयो....ते जगतनुं कल्याण करो.











जय महावीर!
जय शांतिनाथ!
जय सीमंधर! जय कुंदकुंददेव! जय गुरुदेव! जय परमागम!