Atmadharma magazine - Ank 366
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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पंचकल्याणक पूरा थया ने ईन्द्रो वगेरे सीमंधरप्रभुना दर्शन करवा जिनमंदिरमां
आव्या, ते वखते जिनमंदिरमां भक्तोनी भीड बेसुमार हती. सात–सात दरवाजा
धरावतुं विशाळ मंदिर ते पण आजे तो घणुं नानुं लागतुं हतुं. आखुं सोनगढगाम
चारेकोर दर्शकोनी भीडथी उभरातुं हतुं. उत्सवनी पूर्णतानो आनंद सर्वत्र फेलाई रह्यो
हतो.
८ा वागे गुरुदेवनुं प्रवचन थयुं. त्यार पहेलांं ईंग्लीश भाषामां जैन
बाळपोथीनुं प्रकाशन थयुं. माननीय प्रमुखश्री नवनीतभाई झवेरीए गुरुदेवने पुस्तक
अर्पण कर्युं. त्यारबाद गुरुदेवे प्रथम पुस्तक शेठ श्री शांतिप्रसादजी शाहूने आप्युं. आ
बाळपोथीनी कुल नकल १३००० (पांच भाषामां) प्रकाशीत थई गई छे. जैन
साहित्यनुं आ एक गौरव छे; अने तेनी खुशालीमां प्रमुखश्रीना हस्ते बाळपोथीना
लेखक (ब्र. हरिभाई जैन) ने सुवर्णचंद्रक भेट आपवामां आव्यो छे.
त्यारबाद आ भव्य परमागममंदिरना कामकाजमां मुरब्बी श्री रामजीभाईए
९१ वर्षनी उंमरे पण जे मार्गदर्शन आप्युं छे, ने नाना–मोटा दरेक प्रश्नोनो झडपी उकेल
लावीने परमागम–मंदिरनुं काम अत्यंत सुंदर रीते पूर्णताए पहोंचाडयुं छे–ते बदल
जैनसमाज तरफथी तेमनुं सन्मान करवामां आव्युं हतुं अने परमागममंदिरनी एक
सुंदर प्रतिकृति अभिनंदन पत्र साथे श्रीमान शांतिप्रसादजी शाहूना हस्ते तेओश्रीने
अर्पण करवामां आवी हती. खरेखर मुरब्बीश्री रामजीभाईनी दोरवणीमां समस्त
मुमुक्षुओए तमन्नाथी परमागममंदिरनुं काम पार पाडयुं छे, ने गुरुदेवना मंगल प्रतापे
उत्सव पण धार्या करतां सवाया उमंगथी उजवायो छे.
फागण सुद तेरसे बराबर ११ वागे परमागममंदिरमां प्रतिष्ठा थई. गुरुदेवे
अत्यंत भक्तिपूर्वक महावीर भगवानना अतिशय भव्य जिनबिंबना चरणस्पर्श
करीने कमल पर स्थापना करी. अहा, शो ए वखतनो उल्लास! केवी भीड! ने चारेकोर
हर्षनो केवो कोलाहल! आकाश पण हेलिकोप्टरना अवाजथी गाजतुं जाणे के भक्तिना
कोलाहलमां उमेरो करी रह्युं हतुं. प्रभुजीने स्थापना करवानो लाभ जयपुरना
पुरनचंदजी गोदिकाए लीधो हतो. प्रभुनी स्थापना पछी एमनी प्रशांत मुद्रा नीहाळ्‌या
ज करवानुं मन थतुं हतुं. ते प्रशांतमुद्रा प्रसिद्ध करती हती के चैतन्यनी शांतिमां
संसारनो कोई कोलाहल नथी. एटले भगवाननी स्थापनाना बहाने मुमुक्षुओ पोताना
अंतरमां चैतन्यनी शांतिनी ज स्थापना करता हता,–एवा ए वखतना भावो हता.