Atmadharma magazine - Ank 366
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: ५० : आत्मधर्म : चैत्र : २५००
वीरप्रभुनां पारणाझुलननां पावन द्रश्यो: गुरुदेव प्रसन्नताथी नीहाळी रह्या छे.
पारणे झुली रहेला वीरकुंवर कहे छे–
माता मारी मोक्षसाधिका धन्य धन्य छे तुजने; तुज हैयानी मीठी आशीष...
वहाली लागे मुजने...माता! दरशन तारा रे जगतने आनंद करनारा.
(फोटो : विजय स्टुडियो : मोरबी)
बेटा, तुं तो स्वानुभूतिनी मस्तीमां नित महाले...हींचोळुं हीरलांनी दोरे...
उरनां वहाले–वहाले...बेटा! जन्म तुमारो रे जगतनुं मंगल करनारो.
(फोटो : वोरा स्टुडियो : अमदावाद)