अशरीरी सिद्धपद पाम्या. ईन्द्रोए अने राजाओए दीप–माळ प्रगटावीने
निर्वाणनो मोटो महोत्सव कर्यो.....एटले के मोक्षपदनुं बहुमान कर्युं ‘मोक्षनो
थाय छे. अने एवा दीवडा आत्मामां जेणे प्रगटाव्या तेणे ज भगवान महावीरने,
अने तेमना मार्गने ओळख्या छे. सादि–अनंतकाळना महान सुखनो लाभ–ते
ओळखाणनुं फळ छे.
अनंत दर्शन–ज्ञान अनंत सहित जो.
चैतन्यरस एकसाथे वेदनमां आवे छे....आत्मा एकदम शांत–शांत स्वभावे
पाछा न फरीए ते अमारा तीर्थंकरोना कूळनी टेक छे; मोक्षने साधवो ते अमारा
कूळनो वट छे....प्रभु! तारा मार्गमां आव्या, हवे अप्रतिहतपणे अभूतपूर्व एवुं
केवळज्ञान लीधे ज छूटको. ‘वीरना लघुनंदन’ अमे पण वीर छीए. (नानुं पण
सिंहनुं बच्चुं!)
ते जीव जाणे आत्मने, तसु मोह पामे लय खरे.
शांतिमां आववानो वीरप्रभुनो हुकम छे; ए ज वीरनुं शासन छे. अहा,
वीरशासनमां बतावेलो आत्मा तो अतीन्द्रियआनंदनो मोटो पहाड छे, तेमां ऊंडे
ऊतरतां परम शांतरसनुं वेदन थाय छे. –एना महिमानुं शुं कहेवुं? आ आत्मानी
कीर्ति जगतमां त्रणेकाळ फेलायेली छे, चैतन्यतत्त्व सर्वत्र विजयवंत वर्ते छे. अनंत
गंभीर भावोथी भरेलुं आवुं ज्ञानतत्त्व हुं छुं, ज्ञानने मारा ज्ञानमां ज जोडीने हुं
मने ज्ञानपणे अनुभवुं छुं –आ ज वीरनाथनी