Atmadharma magazine - Ank 366
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म : चैत्र : २५००
भगवान महावीर, अशरीरी पूर्ण ज्ञान–आनंदने तो केवळज्ञान थयुं
त्यारथी पाम्या हता. अढीहजार वर्ष पहेलांं आसो वद अमासे पावापुरीथी प्रभु
अशरीरी सिद्धपद पाम्या. ईन्द्रोए अने राजाओए दीप–माळ प्रगटावीने
निर्वाणनो मोटो महोत्सव कर्यो.....एटले के मोक्षपदनुं बहुमान कर्युं ‘मोक्षनो
साचो उत्सव तो आत्मामां सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रयना आनंद दीवडा प्रगटावीने
थाय छे. अने एवा दीवडा आत्मामां जेणे प्रगटाव्या तेणे ज भगवान महावीरने,
अने तेमना मार्गने ओळख्या छे. सादि–अनंतकाळना महान सुखनो लाभ–ते
ओळखाणनुं फळ छे.
सादि–अनंत अनंत समाधि सुखमां,
अनंत दर्शन–ज्ञान अनंत सहित जो.
–अहो! आवुं अद्भुतादभ्दुत सुख प्रभुनी ओळखाणथी पमाय छे.
चेतनस्वरूपे प्रभुना आत्माने ओळखतां पोताना आत्मामां अनंतगुणनो मधुरो
चैतन्यरस एकसाथे वेदनमां आवे छे....आत्मा एकदम शांत–शांत स्वभावे
परिणमी जाय छे. पूर्वे कदी न अनुभवेली शांति तेमां अनुभवाय छे.
प्रभो! चेतनभावे आपने ओळखतां खबर पडी के अमे पण तमारा ज
कुळना (चेतनस्वरूप) छीए. रागथी भिन्न पडीने मोक्षने साधवा नीकळ्‌या, ते हवे
पाछा न फरीए ते अमारा तीर्थंकरोना कूळनी टेक छे; मोक्षने साधवो ते अमारा
कूळनो वट छे....प्रभु! तारा मार्गमां आव्या, हवे अप्रतिहतपणे अभूतपूर्व एवुं
केवळज्ञान लीधे ज छूटको. ‘वीरना लघुनंदन’ अमे पण वीर छीए. (नानुं पण
सिंहनुं बच्चुं!)
जे जाणतो अरहंतने गुण–द्रव्यने पर्ययपणे,
ते जीव जाणे आत्मने, तसु मोह पामे लय खरे.
वीरनिर्वाणना आ अढीहजारमा मंगलवर्षमां आत्मानी प्राप्ति थाय,
अनुभूति थाय, एना जेवो बीजो कोई लाभ जगतमां नथी. चैतन्यनी अपूर्व
शांतिमां आववानो वीरप्रभुनो हुकम छे; ए ज वीरनुं शासन छे. अहा,
वीरशासनमां बतावेलो आत्मा तो अतीन्द्रियआनंदनो मोटो पहाड छे, तेमां ऊंडे
ऊतरतां परम शांतरसनुं वेदन थाय छे. –एना महिमानुं शुं कहेवुं? आ आत्मानी
कीर्ति जगतमां त्रणेकाळ फेलायेली छे, चैतन्यतत्त्व सर्वत्र विजयवंत वर्ते छे. अनंत
गंभीर भावोथी भरेलुं आवुं ज्ञानतत्त्व हुं छुं, ज्ञानने मारा ज्ञानमां ज जोडीने हुं
मने ज्ञानपणे अनुभवुं छुं –आ ज वीरनाथनी