Atmadharma magazine - Ank 366
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: चैत्र : रप०० आत्मधर्म : ५ :
साची उपासना छे ने आ ज मुक्तिनो महोत्सव छे, आ ज दीवाळीनी मंगल बोणी छे.
अहा, आत्माने आनंदनो लाभ थाय–एना जेवी उत्तम बोणी बीजी कई होय?
भगवानना शासनमां आनंदमय समतारसनुं पान करीने आत्मा तृप्त–तृप्त थाय छे.
भगवान भेट्या....हवे भव केम होय? भगवान अने भक्तनी एवी संधि छे के भक्त
पण अल्पकाळमां भगवान थई जाय छे. बस, भगवान थवा माटे, वीरप्रभुना आ
अढीहजारमा मंगलवर्षमां अमारा आत्मामां मोक्षमार्गना मंगळ दीवडा प्रगटो–एवी
वीरप्रभुनी आशीष लउं छुं. वीरप्रभु जेवुं अमारुं जीवन बनो.
जय महावीर
घणा लोको स्वर्गना देवनी वात सांभळे त्यां आश्चर्य पामे छे,
पण भाई! ए स्वर्ग कांई आश्चर्यकारी वस्तु नथी, तुं पोते अनंतवार
त्यां जई आव्यो छो. स्वर्गना असंख्य अवतार थाय त्यारे मनुष्यनो
एक ज अवतार थाय; बीजी रीते कहीए तो जीवोमांथी असंख्यजीवो
ज्यारे स्वर्गमां जाय त्यारे मात्र एक जीव मनुष्यमां अवतरे. आवुं मोंघुं
मनुष्यपणुं छे; ने देवपणुं तो तेना करतां असंख्यगणुं सस्तुं छे.
आत्माना अज्ञानथी चारगतिमां भमता जीवे सौथी वधु भव
एकेन्द्रियादि तिर्यंचगतिमां कर्यां छे; ते उपरांत मनुष्य, नरक अने
स्वर्गना अवतार पण अनंतवार कर्यां छे; तेमांय मनुष्य करतां नरकनां,
ने नरक करतांय स्वर्गना अवतार असंख्यगुणा कर्या छे. सरेराश असंख्य
अवतार स्वर्गना ने नरकना करे त्यारे एक अवतार मनुष्यनो मळे;
आवी मनुष्य अवतारनी दुर्लभता छे. ने आवा दुर्लभ मनुष्य अवतारमां
पण जैनधर्मनो वीतरागी उपदेश सांभळवा मळवो बहु दुर्लभ छे. आवो
दुर्लभ मनुष्य अवतार अने वीतरागी जैनधर्मनो उपदेश तने अत्यारे
महाभाग्ये मळ्‌यो छे, तो हवे तुं शीघ्र जाग, चेतीने सावधान था, ने
आत्मानी ओळखाण वडे सम्यग्ज्ञान प्रगट करीने भवदुःखनो अंत कर.