Atmadharma magazine - Ank 366
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म : चैत्र : २५००
जय सीमंधर–महावीर–शांतिनाथ–नेमिनाथ
राजकोट शहेरना प्रवचनोनी प्रसादी
चैत्र सुद १ थी चैत्र सुद ४
गुरुदेवे चैत्र सुद एकमनी सवारमां सोनगढमां सीमंधरप्रभुना दर्शन
करीने सवारे ८ वागे राजकोटमां सीमंधरप्रभुनां दर्शन कर्या...अहा!
जीवनमां सर्वत्र जिनवरदेव साथे ने साथे ज छे. राजकोटमां मंगळ
प्रवचनमां गुरुदेवे कह्युं के अतीन्द्रिय आनंदनो नाथ आत्मा छे, ते मंगळ
छे, तेमां परभावनुं कर्ता–भोक्तापणुं नथी. आवुं ज्ञान ते रागथी छूटुं
पडेलुं विशुद्धज्ञान छे.

आवा सर्वविशुद्धज्ञाननो आत्मामां प्रवेश थाय एटले के आत्मामां आवी
ज्ञानदशा प्रगटे ते अपूर्व मंगळ छे. ज्ञानभाव अपूर्व अतीन्द्रिय आनंद सहित छे, तेने
पोताना आनंदवेदनमां कोई देव–गुरुना रागनोय आशरो नथी. रागादिना कर्ता–
भोक्तापणानो नाश करीने ते ज्ञान प्रगट्युं छे.
समवसरणमां बिराजमान साक्षात् सर्वज्ञ परमात्मा एम कहे छे के आनंदस्वरूप
चैतन्यतत्त्व छे तेने शोधवा जीव ज्यां अंतरमां जाय छे त्यां तेने रागनुं कर्तृत्व छूटी
जाय छे. रागना वेदनवडे भगवान आत्मा जणाय नहि.–पछी ते राग देव–गुरु तरफनो
होय, –पण ज्ञानमां तो ते रागना कर्तृत्वनो नाश थई गयो छे.
जुओ, सोनगढमां हमणां जे परमागमनी प्रतिष्ठानो भव्य महोत्सव उजवायो,
ते परमागम आ वंचाय छे. ते परमागममां कहेलुं भावश्रुतज्ञान केवुं छे. ते ओळखतां
आत्मामां भाव–परमागमनी स्थापना थाय छे. चैतन्यना अनुभवना मशीनथी
धर्मीना आत्मामां भावश्रुत–परमागम कोतराई गयां छे. एनो आत्मा पोते
ज्ञानपूंजपणे प्रगट्यो