Atmadharma magazine - Ank 367
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: : आत्मधर्म : वैशाख : २५००
छे...ए वीणामांथी आत्माना आनंदना सूर नीकळे छे जे सांभळतां शुद्धात्माना
अनुभवनी मीठाशथी मुमुक्षु आत्मा डोली ऊठे छे.
१४. भेदज्ञानवडे ज्ञान अने रागनो जेणे भंग कर्यो छे एवा धर्मात्मा भेदज्ञानी जाणे
छे के राग मारा स्वभावथी दूर रहेनार छे. मारी चैतन्य चेतनामां रागनो स्पर्श
शोभतो नथी; रागथी मारी चेतना जुदी ने जुदी रहे छे. बापु! तारी चेतनामां
रागनो स्पर्श करवा दईश तो तारी चैतन्यसंपदा लूंटाई जशे–बगडी जशे.
१५. अहा, अनुभूतिस्वरूप आत्मा तो सदा चेतनपणे ज वेदनमां आवे छे. पण
अज्ञानी रागना वेदनने पोतानुं वेदन मानीने, पोताना स्वसंवेदनथी भ्रष्ट थई
रह्यो छे. अरे, राग तो तारी चेतनाथी विरुद्ध कार्य करनारो छे. रागनुं कार्य
अशुद्ध छे, दुःख छे; चेतना तो दुःख वगरनी, शुद्ध छे, शांतिरूप छे.–आवुं
भिन्नपणुं जाणीने जीव ज्यारे पोताना स्वरूपने चेतनारूपे अनुभवे छे त्यारे
तेने साध्यनी सिद्धि थाय छे, एटले मोक्षमार्ग प्रगटे छे.
१६. बापु! आ तारा मोक्षना मारगडा संतो तने बतावे छे. जगतना मारगथी ते
जुदी जातना छे. विकल्पना रागना मार्गेथी तारा आत्माने पाछो वाळ, ने
चैतन्यना मार्गमां जोड. तने अपूर्व शांतिना दरिया तारामां देखाशे. अरे,
शांतिना भंडार चैतन्यराजाने ओळखीने एने सेवे, तो अपूर्व शांति मळ्‌या
वगर रहे नहि.
१७. आत्मानो अनुभव केम करवो? के ज्ञानवडे ज्ञानस्वभावनो निर्णय करीने,
ज्ञानने ईन्द्रियोथी पार करीने ज्ञानस्वभावनी सन्मुख थतां विज्ञानघन
आनंदमय प्रभु आत्मा प्रगट अनुभवमां आवे छे विकल्पमां ऊभा रहीने ते
आत्मा अनुभवमां आवी शकतो नथी.
१८. विकल्पथी पार थयेलुं अतीन्द्रिय स्वसंवेदन ज्ञान, तेमां आत्मतत्त्व प्रगट
अनुभवमां आव्युं, तेने ज सारभूत समय कहेवाय छे; तेमां सम्यग्दर्शन ज्ञान–
आनंद वगेरे अनंत आत्मभावो समाय छे; ते ज पक्षातिक्रांत छे.
१९. ते अनुभवमां सम्यक् मति–श्रुतज्ञान छे, मति–श्रुतज्ञान होवा छतां तेनी केटली
अतीन्द्रिय ताकात छे! तेनी अज्ञानीने खबर नथी. ते मति–श्रुतज्ञान ईन्द्रिय
वगर, ने राग वगर काम करनारा छे.