Atmadharma magazine - Ank 367
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २५०० आत्मधर्म : १९ :
३. ते ज वखते शुद्धोपयोगमां लीन ते मुनिराज, नथी तो भूंड उपर राग करतां, के
नथी वाघ उपर द्वेष करता–ए तो वीतराग छे.
मुनिराजने खाई जवा माटे वाघ गूफा पासे आव्यो. भूंडने तेनो ख्याल आवी
गयो एटले तरत ज वच्चे आवीने तेणे वाघने रोक््यो.
वाघ एना पर तूटी पड्यो....वाघ अने भूंड बंने लड्या; खूब लड्या. कू्रर
वाघनी सामे पण भूंडे बराबर टक्कर झीली; तेना मनमां एक ज धून हती के प्राण
आपीने पण हुं मुनिने बचावीश. बंने खूब लडे छे,–एक तो मुनिना रक्षण माटे लडे छे,
ने बीजो मुनिना भक्षण माटे लडे छे. लडतां–लडतां बंनेए एक–बीजाने मारी नांख्या...
बंनेए एकबीजानी हिंसा करी. वाघ तो मरीने दुर्गति गयो; सुवर मरीने सुगतिमां
गयुं; मुनिराज तो ध्यानमां ज वीतरागपणे बिराजी रह्या ने केवळज्ञान प्रगटावी
मोक्षगति पाम्या.
हवे तेनुं पृथक्करण
आ द्रष्टांतमां त्रण पात्रो छे:–
(१) सुवरनो जीव:– जे मुनिने बचाववाना प्रशस्त राग–कषायमां वर्ते छे.
(र) वाघनो जीव :– जे मुनिराजने मारवाना अप्रशस्त द्वेषकषायमां वर्ते छे.
(३) मुनिराज :– जेओ अकषाय वीतरागभावमां वर्ते छे.
हवे आमां हिंसा–अहिंसा कया प्रकारे छे ते जोवा माटे, ज्यारे आपणे सुवर
अने वाघनी सरखामणी करशुं त्यारे वाघ करतां सुवरना भाव सारा छे, एटले वाघ
करतां ते सुवरनी आपणे प्रशंसा करीशुं.
मुनिनी हिंसा न थई तोपण वाघने पोताना कू्रर परिणामने लीधे हिंसानुं पाप
लागी ज गयुं ने ते दुर्गतिमां गयो. वाघनी हिंसा थई छतां भूंड पोताना शुभ
परिणामने लीधे सुगतिमां गयुं. एटले बाह्य जीवोनुं जीवन–मरण ते हिंसा–अहिंसानुं
कारण नथी पण जीवनो भाव ज हिंसा–अहिंसानुं कारण छे. आ द्रष्टांतमां मुनिनी
हिंसा भले न थई तोपण तेने मारी नाखवाना वाघना हिंसकभावने तो कोईपण रीते
सारो नहि ज कहेवाय. मुनिने मारवानी अपेक्षाए मुनिने बचाववानो रागभाव जरूर
प्रशंसनीय छे.
– पण –
हजी आपणी वात अधूरी छे; केमके हजी त्रीजा पात्रने भेळववानुं बाकी छे.