Atmadharma magazine - Ank 367
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २५०० आत्मधर्म : २३ :
सर्वज्ञ–ज्ञानविषे सदा उपयोगलक्षण जीव छे;
ते केम पुद्गल थई शके के ‘मारुं आ’ तुं कहे अरे?
शरीरथी ने रागादिभावोथी भिन्न, चैतन्यमय आत्मतत्त्वने जे जाणतो नथी
अने रागादि–संयुक्त जीवने ज अनुभवे छे एवा अप्रतिबुद्ध–जिज्ञासुने, आचार्यदेव
सर्वज्ञ–ज्ञाननी साक्षीथी अने पोताना स्वानुभवथी प्रतिबोधे छे के: हे भाई, ‘जे नित्य
उपयोगस्वरूप छे ते जीव छे’ एम सर्वज्ञ भगवानना ज्ञानमां आव्युं छे, आगममां
पण भगवाने स्पष्ट एम प्रकाश्युं छे, ने अनुभवमां पण जीव पण सदा ज्ञानस्वरूपे ज
अनुभवाय छे. पोतानुं उपयोगपणुं छोडीने जीव कदी पुद्गलरूप तो थई जतो नथी;
जेम अंधकारने अने प्रकाशने एकपणुं नथी पण जुदापणुं ज छे, तेम चेतनप्रकाश
वगरना एवा रागादिभावोने अने चेतनप्रकाशरूप उपयोगने कदी एकपणुं नथी पण
सदा जुदापणुं ज छे. आम तारा उपयोगलक्षण वडे तारा जीवने तुं समस्त जडथी ने
रागथी जुदो जाण, ने उपयोगस्वरूपे ज पोताने अनुभवमां लईने हे जीव! तुं अत्यंत
प्रसन्न था....आनंदित था.
अरे, अत्यार सुधी उपयोगस्वरूपने भूलीने, रागादिरूपे ज में मने मानीने मारी
हिंसा करी ने तेथी चारगतिमां हुं दुःखी थयो. पण हवे सर्वज्ञमार्गी श्रीगुरुओना प्रतापे
मारा स्वतत्त्वनुं मने भान थयुं के अहो! हुं तो सदा उपयोगस्वरूप ज रह्यो छुं; मारुं
उपयोगस्वरूप हणायुं नथी.–आम उपयोगस्वरूपनी अनुभूति रागादिथी अत्यंत भिन्न
होवाथी ते परम अहिंसारूप छे, एटले उपयोगस्वरूपनो अनुभव (शुद्धउपयोग) ते ज
परम अहिंसाधर्म छे.
सर्वमान्य मोक्षशास्त्रमां श्री उमास्वामी कहे छे के:–
‘उपयोगो लक्षणम् ’
उपयोग जेनुं लक्षण छे ते जीव छे. जीवने पोताना उपयोगस्वरूपमां सदा
तन्मयपणुं छे, रागादिना के शरीरादिमां तेने तन्मयपणुं नथी. ते उपयोग कोईथी
रचायेलो नथी, पोतानुं सत्पणुं टकाववा ते कोई ईंद्रियोनी के रागनी अपेक्षा राखतो
नथी; ईंद्रियो के राग वगर ते स्वयंसिद्ध जीवनुं स्वरूप छे.
ते चेतनानुं रागरहित निर्मळ परिणमन, एटले के शुद्धचेतना ते अहिंसा छे,