ते केम पुद्गल थई शके के ‘मारुं आ’ तुं कहे अरे?
सर्वज्ञ–ज्ञाननी साक्षीथी अने पोताना स्वानुभवथी प्रतिबोधे छे के: हे भाई, ‘जे नित्य
उपयोगस्वरूप छे ते जीव छे’ एम सर्वज्ञ भगवानना ज्ञानमां आव्युं छे, आगममां
पण भगवाने स्पष्ट एम प्रकाश्युं छे, ने अनुभवमां पण जीव पण सदा ज्ञानस्वरूपे ज
अनुभवाय छे. पोतानुं उपयोगपणुं छोडीने जीव कदी पुद्गलरूप तो थई जतो नथी;
जेम अंधकारने अने प्रकाशने एकपणुं नथी पण जुदापणुं ज छे, तेम चेतनप्रकाश
वगरना एवा रागादिभावोने अने चेतनप्रकाशरूप उपयोगने कदी एकपणुं नथी पण
सदा जुदापणुं ज छे. आम तारा उपयोगलक्षण वडे तारा जीवने तुं समस्त जडथी ने
रागथी जुदो जाण, ने उपयोगस्वरूपे ज पोताने अनुभवमां लईने हे जीव! तुं अत्यंत
प्रसन्न था....आनंदित था.
मारा स्वतत्त्वनुं मने भान थयुं के अहो! हुं तो सदा उपयोगस्वरूप ज रह्यो छुं; मारुं
उपयोगस्वरूप हणायुं नथी.–आम उपयोगस्वरूपनी अनुभूति रागादिथी अत्यंत भिन्न
होवाथी ते परम अहिंसारूप छे, एटले उपयोगस्वरूपनो अनुभव (शुद्धउपयोग) ते ज
परम अहिंसाधर्म छे.
रचायेलो नथी, पोतानुं सत्पणुं टकाववा ते कोई ईंद्रियोनी के रागनी अपेक्षा राखतो
नथी; ईंद्रियो के राग वगर ते स्वयंसिद्ध जीवनुं स्वरूप छे.