Atmadharma magazine - Ank 367
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: २८ : आत्मधर्म : वैशाख : २५००
साचुं जीवन आयुकर्म वगर ज जीवी शकाय छे. अनंत सिद्धभगवंतो आयु वगर
एवुं जीवन जीवे छे. जीवना प्राण चैतन्य छे. (आत्मद्रव्यहेतुभूत चैतन्यमात्र
भावधारणलक्षणा जीवत्व शक्तिः।] चैतन्यमात्र भावने धारण करीने सदा जीवे एवी
आत्मानी जीवत्वशक्ति छे, एटले जीव सदा चैतन्य–जीवनथी जीवनारो छे, आयुकर्मथी
नहि.
जो आयुकर्मथी जीव जीवतो होत तो बधा सिद्धभगवंतो मरी जात.
आयुना अभावमां कांई जीवनो अभाव थतो नथी.
आवा चैतन्यजीवनने ओळखे तेने देहबुद्धि रहे नहि, ने मरणनो भय मटी
जाय. जेने आयुकर्मनो अभाव थयो तेनुं मृत्यु कदी थई शकतुं नथी.
शुं आयुकर्मथी जीव जीवे छे?–ना;
जेने आयुकर्म नथी ते सदाय जीवे छे, तेने कदी मरण थतुं नथी, जेने आयुकर्म छे
ते तो मरे छे.
आयुकर्मने आधीन रहीश तो तुं मरीश.
आयुकर्मथी छूटो पडी जा तो तुं सदा जीवीश.
आयुकर्म वगर, स्वाधीन उपयोग वडे तुं जीवनार छो.
अरे; तने तारा आत्मानुं स्वाधीन जीवन जीवतांय न आवडयुं, ने आयुकर्मने
आधीन रहीने अनंतवार तुं मर्यो, दुःखी थयो. हवे, देह अने कर्मथी पार तारा स्वाधीन
चैतन्यथी जीवतां शीख, तो कदी मरण नहि थाय, ने सदाकाळनुं सुखी जीवन रहेशे.
तेथी संतो कहे छे के–उपयोगलक्षण जीव छे, ने ए ज साचुं जीवन छे.
सिद्ध भगवंतो अमर छे; तेमने मरण केम नथी?
आयुकर्मनो सर्वथा अभाव होवाथी तेमने कदी मरण नथी.
जो आयुथी जीव जीवतो होत तो ते आयुना अभावमां जीवनोय अभाव थई
जात. जीव तो आयु वगर पोताना चैतन्यभावथी ज जीवे छे–एवी तेनी जीवत्वशक्ति
छे. ज्यां चैतन्यभाव पूरो खीली गयो छे त्यां अमर जीवन प्रगटे छे.
आ रीते चैतन्यमय वीतरागभाव ते आत्मानुं जीवन छे.
अहिंसा ते चैतन्यजीवन छे. हिंसा ते मरण छे.
माटे हे भव्य जीवो! जिन–सिद्धांतने जाणीने वीतरागभावरूप
परम अहिंसा धर्मनुं सेवन करो.
जय महावीर