Atmadharma magazine - Ank 367
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख: २५०० आत्मधर्म : २९ :
(अनुसंधान पानुं ८ थी चालु)
४२. अहो, आ ‘ज्ञाननी सेवा’ मां ज्ञानस्वरूप शुद्धद्रव्य ने शुद्धपर्याय बंने आवी
जाय छे. शुद्धद्रव्य ने शुद्धपर्याय (एटले नित्य अने अनित्य स्वरूप आत्मा)
तेना स्वीकार वगर ज्ञाननी साची सेवा थई शके नहि, एटले धर्म के मोक्षमार्ग
थई शके नहि.
४३. अंतर्मुख थयेली ज्ञानपर्याय वगर, नित्य ज्ञानस्वरूपनी सेवा करी कोणे? एकलुं
नित्य पोते पोताने सेवे नहीं; सेववापणुं अनित्य–पर्यायमां होय, अने ते
पर्याय कां तो निसर्ग अने कां तो अधिगम एवा कारणपूर्वक प्रगटे छे. ते
कारणनो जेने स्वीकार नथी, पर्यायनो जेने स्वीकार नथी, तेने ज्ञाननी सेवा
प्रगटी ज नथी.
४४. रागथी जे लाभ माने तेणे ज्ञाननी सेवा करी ज नथी, तेणे आत्माने
ज्ञानस्वरूप जाण्यो ज नथी. ज्ञानस्वरूप आत्माने जाणीने तेनी सन्मुख थयो
त्यां तो अपूर्व आनंदनो अनुभव थाय छे; ते आनंदसहित ज्ञाननी सेवा थाय
छे.
४५. ज्ञाननी आ रीते सेवा करनार जीवने पोतानी पर्यायमां, अनादिनो आनंदनो
दुकाळ टळीने, आनंदनो सुकाळ थई जाय छे...पर्यायमां आनंदनी रेलमछेल थई
जाय छे.–तेणे ज्ञाननी सेवा करी, तेणे भगवाननी ने गुरुनी शिखामण मानी.
तेने ज्ञाननो अनुभव कर्यो. गुण–गुणीने तेणे एकरूपे अनुभव्या, द्रव्य–
पर्यायनो भेद तेणे मटाडयो ने अभेदनो अनुभव कर्यो. आ जैनशासननुं रहस्य
छे; आ वीतरागी संतोनो उपदेश छे.
४६. आत्मा अने तेनी ज्ञानपर्याय अभेद छे, ने राग साथे तेने भेद छे,–एवुं
भेदज्ञान, अने ज्ञाननी अनुभूतिस्वरूप आत्मा तेने जाणीने, श्रद्धा करवी ते
धर्मात्मानुं प्रथम कर्तव्य छे. मुमुक्षुए मोक्षने माटे नियमथी जे कर्तव्य छे ते
रागथी भिन्न आत्माना श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र छे, ने ते ज मोक्षमार्ग छे.
४७. अनादिनो अप्रतिबुद्ध शिष्य, विरक्त गुरुना उपदेशथी प्रतिबुद्ध थईने