Atmadharma magazine - Ank 367
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २५०० आत्मधर्म : ३९ :
आनंदथी उजवीए–
प्रभुना मोक्षनो महोत्सव

महावीर भगवान....आपणा परम ईष्ट देव! तेमना
मोक्षगमननुं अढीहजारमुं वर्ष....आखुं भारत आनंदथी उजवीए.
आपणा भगवान केवा महान छे ने तेमणे बतावेलो मोक्षमार्ग
केवो सुंदर छे! तेनी प्रसिद्धि १८० जिज्ञासुओए निबंध द्वारा
व्यक्त करी छे...तेनुं दोहन अहीं अपाय छे. (अंक ३६६ थी चालु)
(र. A. B. नंदलाल तथा प्रज्ञाबेन दामोदरदास गांधी.–बोटाद)
आखुंय भारत आजे अनेरा आनंदथी आ दीपोत्सव उजवी रह्युं छे.
शेनो छे आ मंगल दीपोत्सव! महावीरप्रभुना मोक्षनो आ महोत्सव छे.
अहो! अंदरथी श्रद्धानां रणकार करतो आत्मा जागी जाय एवो आ वीरमार्ग
छे. जेम रणे चडेला रजपूतनी वीरता छानी न रहे, तेम चैतन्यनी साधनाना पंथे
चडेलानी, वीरप्रभुना मार्गे चडेला धर्मात्मानी वीरता छानी न रहे. एनो वैराग्य, एनुं
श्रद्धानुं जोर, एनो धर्मनो प्रेम, एनो आत्मानो उत्साह मुमुक्षुथी छानो न रहे.
ज्ञानदशा खरेखर अद्भुत छे.
भगवान मोक्षे पधार्या एटले भरतक्षेत्रने तो तीर्थंकरनो विरह पड्यो, अने
छतां तेनो उत्सव! हा...पण ए कांई भगवानना विरहनो उत्सव नथी, ए तो मोक्षनी
प्राप्तिनो उत्सव छे, तेमां पोताना मनोरथ प्रत्येना उल्लासनो आनंद छे. सिद्धपद ए
साधकनो मनोरथ छे. ए सिद्धपदना स्मरणमात्रथी पण साधकनुं अंतर पुलकित बने छे
तो भगवानना एवा सिद्धपदने देखीने आनंद केम न थाय! ने ए सिद्धपदनी
अनुमोदना तरीके ए उत्सव केम न उजवे! ए साधकना ज्ञानमां सर्वज्ञनो कदी विरह
नथी.
आ रीते सिद्धपदने अभिनंदवानुं ने मोक्षनो उत्सव उजववानुं २५०० मुं महा
वर्ष नजीक आवी रह्युं छे. माटे आपणे पण रत्नत्रयना पवित्र दीवडा प्रगटावीने