कर्तव्य छे.
नवीनशास्त्रनी स्वाध्यायनो मंगल प्रारंभ करवो, सौ साधर्मीओनी साथे प्रेमथी
सन्मानपूर्वक हळवुं–मळवुं ने धर्मनी चर्चा करवी ए आपणा सौना महान विपुल
कर्तव्यो छे. ते दिवसे एवी उत्तम धर्मचर्चा करवी जोईए के तेना संस्कार जीवनमां
फेलाई जाय, उत्तम भावोनी कमाणी थाय, ने ज्ञानलक्ष्मीनो अपूर्व लाभ थाय.
आपणे तेमना पंथे जईने तेमना जेवा थवुं छे तेवा विचारो करवा ते आपणुं
कर्तव्य छे.
वैशालीमां त्रिशलामाताने त्यां सर्वज्ञपदने साधवा माटे चैत्र सुद तेरसे जन्म्या
हता. बेंतालीस वर्षनी वये प्रभु केवळज्ञान प्रगट करीने अरिहंत थया. त्रीस वर्ष
सुधी धर्मना धोध वहेवडावीने अंते पावापुरीथी प्रभुजी सिद्धालयमां पधार्या...
मोक्ष पाम्या. आजे तेमना निर्वाणने अढीहजार वर्ष थया. तेमनो जन्म घणा
भव्य जीवोने तरवानुं कारण छे, तेथी ते कल्याणक छे. अहा! आ भरतक्षेत्रनी
धन्य पळ छे; वीरता प्रगट करीने पोते तो पूर्ण परमात्मा थया ने जगतना घणा
जीवोने पण भवथी तारता गया. भव्य जीवोने तारवा भगवान कहे छे के हे
आ वस्तु ज स्वयं परिपूर्ण ज्ञानानंदस्वरूप छे. आवा निर्णयथी अंतर्मुख थतां
स्वसंवेदन वडे आत्मा प्रत्यक्षज्ञाता थई जाय छे, एनुं नाम सम्यग्दर्शन छे; ते
पूर्णताना पंथे चडयो, तेणे परमात्मानो साक्षात्कार कर्यो, ते वीरना मार्गे वळ्यो.
–आ छे महावीरनो संदेश.
वहेणथी अमे