Atmadharma magazine - Ank 367
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: वैशाख : २५०० आत्मधर्म : ४१ :
पावन थया. अहा, आपनी सर्वज्ञता, आपनी वीतरागता अने शुद्धात्माना आनंद–
स्वादथी भरेलो आपनो उपदेश, आवी महानताने जे ओळखे छे ते तो आपना
मार्गमां चालवा मांडे छे. अने तेना चित्तमां आप बिराजो छो, ते ज आपने पूजे छे.
आपनी महानताने जे न ओळखी शके ते आपने क््यांथी पूजी शके? प्रभो! अमे तो
आपने ओळख्या छे, अने अमे आपना पूजारी छीए, ने आपना वीरमार्गमां आगळ
वधीए छीए.
पू. गूरुदेव वीरमार्गनी ओळखाण करावतां कहे छे के आपणे तो वीरनां संतान
छीए. “बाप जेवा बेटा” माटे आपणे वीर प्रभुना वीतरागी रस्ते जई, तेमना कहेला
आत्मानी ओळखाण करी तेने साधवानो छे. आत्मानी अनुभवदशा वडे ज मोक्ष
सधाय छे. आ वीरनो मार्ग छे ने आ वीरनो उपदेश छे. आवा मार्गनी ओळखाण
करीने ते पोतामां प्रगट करे तेनो अवतार सफळ छे. तेणे महावीर भगवानने खरेखर
ओळख्या, अने तेणे पोतामां महावीरना वीतरागर्मागने प्रसिद्ध कर्यो. आ रीते
मोक्षमार्गनी प्राप्ति ते तेमनी ओळखाणथी थतो मोटामां मोटो लाभ छे.
पधार्या कुंदकुंद भगवान; साथे आव्या अमृत–पद्म मुनिराज
अहो, आजे (फागण सुद अगियारसे) परमागम
मंदिरमां कुंदकुंदप्रभु आवीने बिराज्या छे. उपर श्री
महावीरप्रभु बिराजी रह्या छे, ने तेमना दिव्यध्वनिने
शास्त्ररूपे गूंथीने कुंदकुंदप्रभु भव्य जीवोने निजवैभवनी
महान भेट आपी रह्या छे. साथे कुंदकुंदप्रभुना बे हाथ जेवा
बे मुनिभगवंतो–अमृतचंद्राचार्य अने पद्मप्रभमुनिराज पण
पधारीने परमागममंदिरमां बिराज्या छे.
अहो, चैतन्यवैभवधारी साधक संतो! आपने देखीने
अमने जे अपूर्व आनंदसहित भक्तिनी उर्मिओ जागे छे ते
तो दिव्यज्ञानवडे स्वर्गमां बेठा–बेठा आप जाणो ज छो....
तेथी ज अहीं साक्षात् पधारीने आज आप अमने
आशीर्वाद आपी रह्या छो. कहानगुरुना हैयामां आपना
प्रत्ये जे उमळको ऊठे छे–ते कोना जेवो छे? जेवी ऊर्मि
सीमंधरप्रभुने देखीने आपने थई हती तेना जेवी उर्मिनो
उमळको आजे अमने आपने देखीने थाय छे.