Atmadharma magazine - Ank 367
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: ४२ : आत्मधर्म : वैशाख : २५००
जीवन धर्मने माटे छे
–धनने माटे नहि
आ अवसर स्वभावधर्मनुं साधन करवा माटे छे, धननी
वृद्धि माटे नहि. माटे हे जीव! ईष्ट एवो जे स्वभाव तेने
साधवानो उद्यम कर...धननी वृद्धिने अर्थे आ जीवनने वेडफी न
नांख.
ईष्ट उपदेश एटले के आत्माना हितनो उपदेश आपतां श्री पूज्यपादस्वामी
कहे छे के अरे जीव! आत्माना स्वभावधर्मनुं साधन करवा माटे आ अवसर छे.
एमां स्वभावनुं साधन करवाने बदले धनने वधारवा माटे तुं आ अवसरने वेडफी
नांखे छे तो तारा जेवो मूर्ख कोण? तुं दिनरात धननी वृद्धि अर्थे प्रयत्न करीने
पाप बांधे छे, ने स्वभावधर्मनुं साधन तुं करतो नथी. आयुष अने पुण्य घटे छे
छतां धननी वृद्धिथी तुं माने छे के हुं वध्यो. पण भाई, एमां तारुं कांई हित नथी.
तारुं हित तो एमां छे के तुं तारा स्वभावनुं साधन कर...आत्माना मोक्षने माटे
प्रयत्न कर. आ भव छे ते भवना अभाव माटे छे एम समजीने तुं आत्माना
हितनो उद्यम कर. आवो हितकारी ईष्ट उपदेश संतोए आप्यो छे.
अरे, धननो लोलूपी माणस पोताना जीवन करतांय धनने वहालुं गणे छे.
काळ जतां धननुं व्याज वधे छे एम ते गणतरी करे छे पण आयुष्य घटतुं जाय छे
एनो एने कांई विचार नथी. एने धन जेटलुं वहालुं छे तेटलो जीव वहालो नथी,
तेथी धनने अर्थे ते जीवनने वेडफी नांखे छे. ईष्ट एवो जे आत्मा तेने भूलीने जेणे
धनने के मानने ईष्ट मान्युं, ते धनने अर्थे तथा मानने अर्थे जीवन गाळे छे. पण
ईष्ट तो मारो ज्ञानस्वभावी आत्मा छे, एना सिवाय बीजुं कांई मारुं ईष्ट नथी–
एम जेणे आत्माने ईष्ट जाण्यो ते जीव आत्माने साधवा माटे पोतानुं जीवन आपी
दे छे. ईष्ट तो साचुं ते ज छे के जेनाथी भवःदुख टळे ने मोक्षसुख मळे. आवा
ईष्टने जे भूल्यो ते ज परने ईष्ट मानीने तेमां सुख माने छे ने तेमां जीवन गुमावे
छे. धर्मीने तो आत्मानो स्वभाव ज सुखरूप ने वहालो लाग्यो छे, ‘जगत ईष्ट
नहि आत्मथी’ एम आत्माने ज ईष्ट समजीने तेना साधनमां जीवन गाळे छे.