Atmadharma magazine - Ank 367
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 58 of 69

background image
: वैशाख : २५०० आत्मधर्म : ४३ :
भाई, धननी वांछाथी तारा आत्माने तुं पापना कीचडमां न डुबाड. अरे, धन
कमाईने पछी पूजा–प्रभावना–दानादिमां वापरीने पुण्य करशुं–एवी वांछाथी पण
धननी लोलुपता न कर. तारी वृत्तिने आत्माना हितना उद्यममां जोड ए ज सौथी ईष्ट
छे. लक्ष्मी मेळववानी लोलुपताथी तो तारो आत्मा कादव जेवा पापथी लेपाय छे.
अत्यारे पाप करीने पछी पुण्य करीशुं एम माननार तो मूर्ख छे, शरीर उपर कादव
चोपडीने पछी स्नान करी लेशुं एम माननार जेवो ते मूर्ख छे. भाई, कादव चोपडीने
पछी नहावुं, एना करतां पहेलेथी ज कादवथी दूर रहेने! तेम भविष्यमां दानादि
करवाना बहाने अत्यारे तारा आत्माने पापरूपी कादवथी शा माटे लेपे छे? हा, सहेजे
तने पुण्यथी जे लक्ष्मी वगेरे मळी होय तेने तुं दान–पूजा–साधर्मीनो आदर वगेरे
सत्कार्यमां वापर.
भाई, पापभाव तो कोई प्रकारे ईष्ट नथी. लक्ष्मी वगेरे मेळववानी वृत्ति ते
पाप छे, एने तो छोड. ने राग घटाडी आत्मानुं जेम हित थाय तेम तुं कर. धनने
मेळववाना भावमां दुःख छे, धननी रक्षाना भावमांय दुःख छे, ने धनने भोगववाना
भावमांय एकली अतृप्ति ने दुःख ज छे. जेमां सर्वत्र दुःख ने आकुळता छे तेमां तारुं
हित जराय नथी. तो तेने ईष्ट कोण माने? हित तो आत्मानी साधनामां छे, जेमां
शरूआतमां पण शांति ने जेना फळमां पण मोक्षसुखनी अपूर्व शान्ति.–आवुं
मोक्षसाधन ते आत्मानुं ईष्ट छे. माटे तेनो ज उद्यम तुं कर–एम संतोनो ईष्ट उपदेश छे.
(ईष्टोपदेश उपरनां प्रवचनोमांथी)
चैतन्यनिधान बतावतां गुरुदेव प्रमोदपूर्वक कहे छे के
अहा, जेना उपर नजर पडतां ज आत्मा जागी ऊठे ने
आनंदना ऊभरा वहे एवुं चैतन्यतत्त्व तुं ज छो. तो हवे तने
जगतमां कोनी वांछा छे? तारामां ज नजर कर. निजवैभव
उपर नजर करतां तुं न्याल थई जईश.
हे जीव!
जो तारे आत्मार्थ साधवो होय तो तुं जगतनी दरकार
छोडी देजे. तुं जगत सामे जोईने बेसी न रहीश. जगतमां गमे
तेम बने, तुं तारा आत्महितना पंथे निःशंकपणे चाल्यो जाजे.