Atmadharma magazine - Ank 367
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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परमागममंदिरमां वीरनाथभगवानने देखतां
वीतरागतानी लहेर ऊठे छे
अहा, शी भव्य प्रतिमा
छे! केवी अद्भुत शांत मुद्रा छे!
परमागम–मंदिरनी भव्यताने
शोभावे एवा वीरनाथ
भगवानने देखतां हृदयमां
वीतरागतानी लहेर ऊठे छे.
जेम, अंदर द्रष्टि करीने
शुद्धात्माने जाणे त्यारे ज
परमागमनी गंभीरतानो साचो
ख्याल आवे छे तेम, अंदर
आवीने ज्यारे तमे आ
वीतरागताना पिंड महावीर–
परमात्माने जुओ त्यारे ज
तमने परमागम–मंदिरनी
भव्यतानो खरो ख्याल आवे छे.
अहा! परमागममां प्रभुसन्मुख
बेठा छीए त्यारे चारेकोर
परमागमोमांथी वीतरागरसनी
मधुरी लहेरीओ उल्लसी रही
छे....ने दिव्यध्वनिना पडघा
संभळाई रह्या छे आवो.....
परमागममां आवीने प्रभु
सन्मुख बेसो....ने चैतन्यनी
गंभीर शांतिनो स्वाद चाखो.
(आत्मधर्मना संपादक हृदयनी ऊर्मिथी महावीर प्रभुना दर्शन करी रह्या छे)
(महावीर फोटोआर्ट: पालीताणा)