चारित्रदशा अंगीकार करवा जाउं छुं...तुं मने आनंदथी रजा आप.
ज्ञानी–पुत्र पोतानी माता पासे आ रीते वैराग्यपूर्वक रजा मांगता
होय–ते प्रसंगे केवो हशे! अहा, धन्य अवसर! पोतानुं जेने हित
प्रसिद्ध वीतरागमार्ग, ते संतोए आ पंचमकाळमांय प्रसिद्ध कर्यो
छे. आचार्यदेव प्रवचनसारमां कहे छे के–शुद्धोपयोगरूप वीतराग–
जे आत्माओ पण आ भवदुःखथी छूटवा मांगता होय, ने
चैतन्यनी परम वीतरागी शांतिने चाहता होय तेओ पण आवुं
मार्गना प्रणेता अमे आ रह्या! अहा! आचार्यदेव जाणे सामे ज
विद्यमान होय! ने धर्मात्माजीवोने चारित्र देता होय! एवा
अलौकिक भावथी चारित्रनुं वर्णन कर्युं छे.
मनोरथ छे. चालो जईए...चारित्रना पंथे...मोक्षना मारगे.