Atmadharma magazine - Ank 369
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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वहाला साधर्मीबंधुओ, वीरनाथ भगवानना मोक्षगमननुं आ अढीहजारमुं
वर्ष चाली रह्युं छे. दीवाळीए प्रभुना मोक्षगमनने अढीहजार वर्ष पूरां थशे ने
समस्त जैनसमाज महान जागृतीपूर्वक ए मंगल–महोत्सव भारतभरमां एक
वर्ष सुधी उजवशे. प्रभुना मोक्षना पचीससो वर्षनी पूर्णतानो आवो भव्य
उत्सव आपणा जीवनकाळ दरमियान उजववानो उत्तम अवसर आव्यो–ए
आपणा धन्य भाग्य छे. आ अवसरमां वीरशासन शोभी ऊठे तेवुं करीए, ने
देव–गुरु–धर्मनी सेवापूर्वक आत्महितनो महान लाभ लईए.
मारा सुभाग्ये मने गुरुदेवना चरणमां रहेवानो, ने आवा धन्य अवसरो
जोवानो लाभ मळ्‌यो. गुरुदेवना चरणमां आव्याने मने ३१ वर्ष थया; एटला
वर्षोथी आत्मधर्मना लेखन–संपादन द्वारा जिनवाणीनी सेवानुं मने सौभाग्य
मळ्‌युं, ने में मारी संपूर्ण हार्दिक भावनाथी गुरुदेवना भावो झीलीने ते काम ३१
वर्षथी संभाळ्‌युं छे. साधर्मीपाठको तरफथी पण मने खूब प्रेम अने सहकार मळ्‌यो
छे. आजे मारा साधर्मी पाठको प्रत्ये गदगदित हृदये लखुं छुं के हवे मारी उमर
पचास वर्ष थई गई छे, ने विशेष निवृत्ति माटे मारी भावना छे; एटले हवे
आत्मधर्म–मासिकनी जवाबदारीथी हुं निवृत्त थाउं ने बीजा कोई नवा उत्साही
भाई आ कार्य संभाळे–एवी मारी भावना छे. जे सोनगढमां कायम रही शके,
गुरुदेव जे अपूर्व अध्यात्मतत्त्व समजावे छे ते समजी शके, अने गुरुदेवनां
प्रवचनोनुं लेखन तथा आत्मधर्मनुं संपादन करी शके, एवा साहित्यकार अने
तत्त्वप्रेमी कोई उत्साही जैन भाई, आ कार्य उल्लासथी संभाळवा तैयार थशे तो
आनंद थशे. उत्साही बंधुओ, आगळ आवो....ने जैनधर्म प्रचारना आ महान
कार्यमां रस ल्यो. भावपूर्वक जिनवाणीनी निरंतर सेवाथी तमने जरूर लाभ थशे.
जिनवाणीनी आवी सेवानो सुअवसर महाभाग्ये ज हाथमां आवे छे. जेओ आ
काम संभाळवा खुशी होय तेमने छमास सुधी संपादक लेखनकार्यमां पूरो साथ
आपशे. तो जेमनी भावना होय तेमणे संस्थाना माननीय प्रमुखश्रीनो संपर्क
साधवो.
(–ब्र. ह. जैन)