Atmadharma magazine - Ank 369
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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वार्षिक लवाजम वीर सं. २५००
चार रूपिया अषाढ
वर्ष ३१ ई. स. 1974
अंक JULY
धर्मीजीव वीतराग सर्वज्ञदेवने अने तेमना कहेला जैनमार्गने ज
उपासे छे; कुदेवादिने स्वप्ने पण ऊपासतो नथी. अरे भाई! जैन थईने
तुं तारा भगवानने पण न ओळख, ने बीजाने मान, तो तुं जैन शेनो?
जैन पोताना सर्वज्ञ–वीतराग–अरिहंत अने सिद्धभगवान सिवाय
बीजाने तो, माथुं जाय तोपण देव तरीके माने नहि. जेने पोताना हित–
अहितनो विचार नथी, स्व–परनी भिन्नतानुं भान नथी, सर्वज्ञदेव तथा
कुदेव वच्चेनो विवेक नथी, एवा मिथ्याद्रष्टि जीवो पोते अंध छे, साचो
मार्ग तेमणे जोयो नथी, तो बीजाने तेओ साचो मार्ग क््यांथी बतावी
शके? अने एवा अंधने अनुसरनारा जीवो साचो मार्ग क््यांथी पामी
शके? जेणे पोते कदी मार्ग देख्यो नथी एवो आंधळो बीजा आंधळाने
कहे के तुं आ मार्गे आव! एनी जेम मिथ्याद्रष्टिजीव–के जेणे कदी आत्मा
जाण्यो नथी, मोक्षमार्ग देख्यो नथी, सम्यग्ज्ञानचक्षु जेने ऊघडया नथी
एवा अंध जीवे बतावेला मार्गथी अज्ञानीओ मोक्षनो साचो मार्ग कई
रीते पामशे? रागथी धर्म मनावे, शरीरनी जडक्रियाने आत्मानी
मनावे,–ए तो बधी वात आंधळाए बतावेला मार्ग जेवी मिथ्या छे, ने
ते संसारना कुवामां पाडनारी छे. जेओ सर्वज्ञ परमात्माने ओळखता
नथी, आत्मा शुं ते जाणता नथी–एवा मिथ्याद्रष्टि जीवोए बतावेला
कुमार्गने हे भव्य! तुं मानीश नहीं, ए मार्गे जईश नहीं. सर्वज्ञना
मार्गने ओळखीने भक्तिथी तेनुं सेवन करजे. सर्वज्ञदेवना मार्गने
ओळखीने स्व–परनो विवेक करवो, अने स्वतत्त्वनो परिचय तथा
अनुभव करवो, ते दरेक जैन–श्रावकनुं कर्तव्य छे.