: र : आत्मधर्म : अषाढ : २५००
बंध–मोक्षनां कारणनो एक ज नियम
एक ज जीवने एक ज काळे ज्ञानधारा ने कर्मधारा;
बंने धारा एक साथे होवा छतां तेमने कर्ता–कर्मपणुं नथी.
शुद्धज्ञानधारा बधा जीवोने मोक्षनुं ज कारण थाय छे;
ने रागधारा बधा जीवोने बंधनुं ज कारण थाय छे.
बंध–मोक्षनो आ नियम बधा जीवोने माटे एकसरखो छे.
ज्ञानीनी दशा संबंधमां अने बंध–मोक्षना कारण संबंधमां
सामान्यपणे जीवो बे प्रकारनी भूल करे छे–
* एक तो एम माने छे के ज्ञानीने शुभाशुभराग सर्वथा होय
ज नहि;
* अने बीजा एम माने छे के ज्ञानीने जे शुभराग होय ते मोक्षनुं
कारण थाय.
–आ बंने मान्यता भूलभरेली छे; अने तेवी मान्यतावाळा
जीवे ज्ञानीनी ज्ञानदशाने ओळखी नथी, तथा ज्ञानधारा अने
रागधारा बंनेनी अत्यंत भिन्नताने, तेम ज तेमना अत्यंत भिन्न फळने
पण ते ओळखतो नथी.–आ ओळखाण अत्यंत महत्त्वनी छे ने जीवने
अपूर्व भेदज्ञाननुं ते कारण थाय छे. तेथी ते संबंधी सुंदर स्पष्टीकरण
जे कळशटीका कळश ११० मां कर्युं छे ते अहीं आपवामां आव्युं छे.
मुमुक्षुओए आ उपयोगी विषयने बराबर लक्षगत करवा जेवो छे.
(–सं.)
[समयसार–कळश ११० उपरना प्रवचनमांथी]
सम्यग्द्रष्टि–ज्ञानीने श्रद्धा–ज्ञानादिनुं जे शुद्धपरिणमन छे ते तो मोक्षनुं कारण छे;
अने तेनी साथे जेटली शुभाशुभ–रागनी क्रियाओ छे ते बधी बंधनुं ज कारण थाय छे.