: अषाढ : २५०० आत्मधर्म : ३ :
टीकाकार ज्ञान अने रागनी अत्यंत भिन्नता बतावीने शुभरागने पण
मोक्षमार्गथी विरुद्ध काम करनार बतावे छे. भाई, तुं रागने मोक्षमार्ग मानीश तो
तने भ्रांति थशे. शुभराग भले ज्ञानीनो होय तोपण ते बंधनुं ज कारण छे, मोक्षनुं
कारण नथी.
अज्ञानीनो शुभराग तो बंधनुं कारण थाय, पण ज्ञानीनो शुभराग तो मोक्षनुं
कारण थतो हशे!–एम कोई माने तो ते भ्रान्ति छे. भाई, बंध–मोक्षना कारणनो
सिद्धांत तो बधा जीवोने माटे सरखो ज होय. एक जीवने जे बंधनुं कारण होय–ते बधा
जीवोने बंधनुं कारण थाय; एक जीवने जे मोक्षनुं कारण होय–ते बधा जीवोने मोक्षनुं
कारण थाय. एक ज भाव कोईने बंधनुं कारण थाय ने कोईने मोक्षनुं कारण थाय–एम
बनी शके नहि. बंध–मोक्षनो नियम बधा जीवोने माटे सरखो ज होय.
घणा जीवो एम भ्रांति करे छे के मिथ्याद्रष्टिनुं यतिपणुं जे शुभक्रियारूप छे ते तो
बंधनुं कारण छे, पण सम्यग्द्रष्टिनुं जे यतिपणुं शुभक्रियारूप छे ते मोक्षनुं कारण छे;–
कारण के अनुभवज्ञान तथा दया–व्रत–तप–संयमरूप शुभक्रिया–ते बंने मळीने
ज्ञानावरणादि कर्मनो क्षय करे छे.–आवी प्रतीति केटलाक अज्ञानी जीवो करे छे.
अहीं आचार्यदेव समजावे छे के हे भाई! जेटली शुभ–अशुभक्रिया छे, ते बधी
बंधनुं ज कारण छे–एवो ज तेनो स्वभाव छे;–तेमां कांई मिथ्याद्रष्टिने अने
सम्यग्द्रष्टिने भेद नथी; एटले के मिथ्याद्रष्टिने तो ते बंधनुं कारण थाय ने सम्यग्द्रष्टिने
ते मोक्षनुं कारण थाय–एवो कोई तफावत नथी. सम्यग्द्रष्टि हो के मिथ्याद्रष्टि हो,–बंनेने
जेटला शुभाशुभ करतूत छे ते तो बंधनुं कारण थाय छे. मोक्षनुं कारण तो मात्र
शुद्धस्वरूप–परिणमन ज छे. हवे सम्यग्द्रष्टिनी विशेषता एटली छे के तेने शुभा–
शुभपरिणामनी क्रिया वखते ज भेदज्ञानवडे शुद्धात्माना संचेतनरूप शुद्धपरिणमन पण
वर्ते छे, ते शुद्धिपरिणमन तो तेने मोक्षनुं कारण थाय छे, ते जरापण बंधनुं कारण थतुं
नथी; अने ते ज वखते तेने जे शुभाशुभभावरूप अशुद्धपरिणमन छे ते बंधनुं कारण
थाय छे.–आम बंने धारा धर्मीने एक साथे वर्ते छे. बंनेने साथे होवामां विरोध नथी
पण बंनेनां कार्य तद्न जुदां छे. ते जुदापणाने अज्ञानी जाणतो नथी एटले ते बंधना
कारणने मोक्षनुं कारण मानीने तेने सेवे छे.
ज्ञानी बंधनां कारणने बंधनुं कारण जाणे छे, ने मोक्षना कारणने मोक्षनुं कारण
जाणे छे, तेमने एकबीजामां जरापण भेळवतो नथी. पुरुषार्थसिद्धिउपायमां