आ आत्माने जे अंशथी सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र छे ते अंशथी तेने बंधन थतुं नथी;
अने जे अंशथी तेने राग छे ते अंशथी तेने बंधन थाय छे.
येनांशेन तु रागः तेन अंशेन अस्य बन्धनं भवति।।
कोनो रह्यो? तेनो खुलासो ए छे के हे भाई! ज्ञानीनी दशानी तने खबर नथी. जे काळे
शुभाशुभराग–क्रिया वर्ते छे ते ज काळे सम्यग्द्रष्टिने शुद्धस्वरूपना अनुभवनुं ज्ञान पण
वर्ते छे, ने ते शुद्धज्ञाननो ज सहारो छे, ते ज मोक्षनुं कारण थाय छे. जे काळे राग छे ते
काळे ज शुद्धज्ञानथी धर्मीने कर्मनो क्षय थाय छे.
तथा आत्माना श्रद्धा–ज्ञान–आनंदना शुद्धपरिणाम–ए बंनेनुं एक ज काळे एक ज
पर्यायमां अस्तित्व छे, एक पर्यायमां बंनेने साथे रहेवानो विरोध नथी; राग साथे रहे
तेथी ज्ञान कांई अज्ञानरूप के रागरूप थई जतुं नथी; ने ज्ञान साथे शुभराग रहे तेथी
कांई ते राग मोक्षनुं साधन थई जतो नथी. ज्ञानीने एक ज काळे ज्ञाननी शांतिनुं
वेदन, ने रागादिनी अशांतिनुं वेदन, वर्ते छे.–साधकदशामां साधकभाव ने बाधकभाव
बंने एकसाथे होवाथी आ वातमां कोई विरोध नथी. एक ज जीवमां एककाळे बंने
धारानुं अस्तित्व, अने छतां बंनेनुं स्वरूप तद्न्न जुदुं, एक मोक्षनी क्रिया ने बीजी
बंधनी क्रिया;–एने ज्ञानी ज ओळखी शके छे. ज्ञानीनी आवी दशानी साची ओळखाण
करे तेने ज्ञान अने रागनुं भेदज्ञान जरूर थाय.
साथे रहेवामां तेओ विरोध करता नथी, बंने पोतपोताना स्वरूपे रहे