Atmadharma magazine - Ank 369
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: अषाढ : २५०० आत्मधर्म : ५ :
छे बंनेना स्वरूपमां विरोध छे, पण सह–अस्तित्वमां विरोध नथी. केटलोक काळ
(एटले के साधकदशा होय त्यांसुधी) तेओ साथे रही शके छे.
जोके शुद्धज्ञानधारा अने रागधारा बंनेनुं फळ एकबीजाथी विरुद्ध छे;
ज्ञानधारानुं फळ मोक्ष छे, ने रागधारानुं फळ बंधन छे; ए रीते स्वरूपथी बंनेने
विपरीतता छे, तोपण शुद्धज्ञानने अने रागादिने एक जीवमां एकसाथे रहेवामां कांई
विरोध नथी. जात जुदी होवा छतां बंने साथे रही शके छे. जेम के चोथा गुणस्थाने
क्षायिकसम्यक्त्वरूप ज्ञानधारा वर्तती होय, ने ते ज वखते ते ज जीवने अव्रतादिरूप
रागधारा पण वर्तती होय, त्यां ते रागधारा कांई क्षायिकसम्यक्त्वनो नाश करती नथी;
तेमज ते रागधारा कांई मोक्षनुं कारण पण थती नथी. मोक्षनुं कारण ज्ञानधारा छे, ते
बंधनुं जराय कारण नथी; अने रागधारा बंधनुं कारण छे, ते जराय मोक्षनुं कारण थती
नथी. साथे होवा छतां बंने धारा पोतपोताना स्वरूपे रहे छे, एकबीजामां भळती नथी.
अहो, आचार्यभगवाने ज्ञानधारा अने रागधारानुं, (मोक्षकारण ने
बंधकारणनुं) केवुं स्पष्ट भेदज्ञान कराव्युं छे! आ प्रमाणे ओळखे तो मोक्षमार्गमां कांई
भ्रम न रहे. तेने भेदज्ञान थाय, ने पोतामां चैतन्यभावने रागादिथी अत्यंत जुदो
अनुभवतो थको ते जीव मोक्षमार्गमां जाय.
ए ज रीते, ज्ञानीने शुभाशुभरागमां दुःखनुं वेदन सर्वथा होय ज नहि–एम
एकांत नथी; ज्ञानीनेय जेटलो राग छे तेटलुं तो दुःखनुं ज वेदन छे ने ते तो बंधनुं ज
कारण छे;–पण ते ज वखते ज्ञानीने ज्ञानना अनुभवरूप जे शुद्ध ज्ञानधारा वर्ते छे तेमां
तो शांतिनुं ज वेदन छे. ते ज्ञानधारानी शांतिने तो ते राग नाश करतो नथी, ते
ज्ञानधारा रागना वेदन वगरनी छे. जेटली ज्ञानधारा छे ते तो आनंदरूप छे, तेमां दुःख
के रागनुं वेदन नथी; आ रीते साधक जीवमां ते काळे राग अने ज्ञानने साथे रहेवामां
विरोध नथी.–परंतु तेमां ज्ञान रागने करे, के राग ज्ञानने करे–एवुं कर्ताकर्मपणुं तेमने
नथी, भिन्नपणुं ज छे;–काळथी के क्षेत्रथी भिन्न नथी पण भावथी भिन्न छे–स्वरूपे भिन्न
छे. आवुं भिन्न स्वरूप ओळखतां रागना कर्तृत्वथी छूटीने ज्ञान पोताना सहज
ज्ञानस्वरूपमां परिणमतुं थकुं ने शांतरसने वेदतुं थकुं मोक्षने साधे छे.
शांतरसने वेदनारी ज्ञानधारा जयवंत वर्तो.