Atmadharma magazine - Ank 369
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: : आत्मधर्म : अषाढ : २५००
देव–गुरु–शास्त्रनी सम्यक् उपासना
ज्ञानवडे थाय छे, राग वडे नहि.
देवपूजा, गुरुसेवा अने शास्त्रस्वाध्याय वगेरे श्रावकनां हंमेशनां कर्तव्य कह्यां छे;
पण देव केवा होय अने तेमणे कहेलुं आत्मस्वरूप केवुं छे? गुरु केवा होय ने तेओ केवा
भाव वडे आत्माने साधे छे? ने शास्त्रोए आत्मानुं स्वरूप तथा मोक्षनो मार्ग केवो
बताव्यो छे? तेनी ओळखाण करे तो ज देव–गुरु–शास्त्रनी सम्यक् उपासना थाय.
ओळख्या वगर एकला शुभरागथी देव–गुरु–शास्त्रनी उपासनानुं साचुं फळ आवतुं
नथी. अहा, सर्वज्ञदेव कोने कहेवाय? एने ओळखतां तो आत्मानुं परमार्थस्वरूप
ओळखाई जाय, ने सम्यग्दर्शन थई जाय. पण एवी ओळखाण शुभराग वडे नथी
नथी; ज्ञानवडे ज ओळखाण थाय छे. ते ज्ञाननुं अने रागनुं कार्य तद्न जुदुं–जुदुं छे.
‘रागवडे जे अरिहंतने पूजे छे ते आत्माने जाणे छे’–एम नथी कह्युं पण ‘ज्ञानवडे जे
अरिहंतने ओळखे छे ते आत्माने जाणे छे ने सम्यग्दर्शन पामे छे ’ एम–
कुंदकुंदस्वामीए कह्युं छे.
अरिहंतप्रत्येनो पूजादि शुभराग ते तो पुण्यबंधनुं कारण छे, ते राग वडे कांई
आत्मा न ओळखाय, के तेनाथी भवनो अंत न आवे; पण रागथी पार एवा
अरिहंतना आत्माना शुद्ध द्रव्य–गुण–पर्यायनुं साचुं ज्ञान करतां, राग अने ज्ञाननुं
भेदज्ञान थई जाय छे ने आत्मानुं साचुं स्वरूप ओळखाय छे; ते ज्ञानथी भवनो
अंत आवे छे. धर्मीनेय पूजादिनो शुभराग होय छे पण तेनुं जेटलुं माप छे तेटलुं ते
जाणे छे.
अहो, जे भगवंतोए, जे गुरुओए आवुं अद्भुत मारुं स्वरूप मने समजाव्युं,
अनंतकाळना घोर अज्ञान–दुःखथी मने छोडाव्यो ने छूटकारानो पंथ बताव्यो, ते
भगवंतोना अने ते गुरुओना उपकारनी शी वात! एमनुं जेटलुं बहुमान करुं तेटलुं
ओछुं छे.