भाव वडे आत्माने साधे छे? ने शास्त्रोए आत्मानुं स्वरूप तथा मोक्षनो मार्ग केवो
बताव्यो छे? तेनी ओळखाण करे तो ज देव–गुरु–शास्त्रनी सम्यक् उपासना थाय.
ओळख्या वगर एकला शुभरागथी देव–गुरु–शास्त्रनी उपासनानुं साचुं फळ आवतुं
नथी. अहा, सर्वज्ञदेव कोने कहेवाय? एने ओळखतां तो आत्मानुं परमार्थस्वरूप
ओळखाई जाय, ने सम्यग्दर्शन थई जाय. पण एवी ओळखाण शुभराग वडे नथी
नथी; ज्ञानवडे ज ओळखाण थाय छे. ते ज्ञाननुं अने रागनुं कार्य तद्न जुदुं–जुदुं छे.
‘रागवडे जे अरिहंतने पूजे छे ते आत्माने जाणे छे’–एम नथी कह्युं पण ‘ज्ञानवडे जे
अरिहंतने ओळखे छे ते आत्माने जाणे छे ने सम्यग्दर्शन पामे छे ’ एम–
कुंदकुंदस्वामीए कह्युं छे.
अरिहंतना आत्माना शुद्ध द्रव्य–गुण–पर्यायनुं साचुं ज्ञान करतां, राग अने ज्ञाननुं
भेदज्ञान थई जाय छे ने आत्मानुं साचुं स्वरूप ओळखाय छे; ते ज्ञानथी भवनो
अंत आवे छे. धर्मीनेय पूजादिनो शुभराग होय छे पण तेनुं जेटलुं माप छे तेटलुं ते
जाणे छे.
भगवंतोना अने ते गुरुओना उपकारनी शी वात! एमनुं जेटलुं बहुमान करुं तेटलुं
ओछुं छे.