Atmadharma magazine - Ank 369
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: २२ : आत्मधर्म : अषाढ : २५००
• सम्यक्त्व वगरनो जीव दान–पूजा–व्रतादिक जे किंचित् पुण्य करे छे ते सर्व विफळ
छे...विरूद्ध फळवाळुं छे.
द्रष्टिहीन जीव कंईक व्रत–दानादि पुण्य करीने, तेना फळमां ईन्द्रियभोगो पामीने
पाछो भवअरण्यमां भमे छे.
• सम्यक्त्वना बळथी जे कर्मो सहजमां हणाय छे ते कर्मो सम्यक्त्व वगर घोर तप
वडे पण हणाता नथी.
• सम्यक्त्वादिथी विभूषित गृहस्थपणुं पण श्रेष्ठ छे केमके ते व्रत–दानादिथी
संयुक्त छे ने भाविनिर्माणनुं कारण छे.
• मुनिनां व्रत सहित, सर्वसंगरहित, देवोथी पूज्य एवुं जिनरूप, ते पण
सम्यग्दर्शन वगर शोभतुं नथी;– ए तो प्राण वगरना सुंदर शरीर जेवुं छे.
• दर्शनरहित जीव कदी निर्वाण पामतो नथी. सम्यक्त्वथी अलंकृत जीव कदाचित्
चारित्रादिथी च्युत थई गयो होय तोपण फरीने चारित्र पामीने मोक्ष पामशे.
• जेम नेत्रहीन जीव रूपने जाणतो नथी तेम सम्यक्त्वचक्षु वगरनो अंध जीव
देव–गुरुने के गुण–दोषने जाणतो नथी.
जेम प्राणवगरना शरीरने मृतक कहेवाय छे, तेम द्रष्टिहीन जीवने चालतुं–मृतक कहेवाय छे.
• सम्यक्त्व सहित जीव भले मात्र नमस्कारमंत्रने ज जाणतो होय तोपण
गौतमादि भगवंतो तेने सम्यग्ज्ञानी कहे छे. अने सम्यक्त्व वगरनो जीव ११
अंगने जाणतो होय तोपण तेने अज्ञानी कह्यो छे.
• अहो, आ सम्यग्दर्शन छे ते ज्ञान–चारित्रनुं बीज छे, मुक्तिसुखनुं दातार छे,
उपमारहित अमूल्य छे; तेने हे जीव! तुं सुखने माटे ग्रहण कर.
जेणे पोताना सम्यक्त्वरत्नने स्वप्नमां पण मलिन कर्युं नथी ते जीव जगतमां
धन्य छे–पूज्य छे–वंद्य छे अने उत्तम बुधजनो वडे प्रशंसनीय छे.
• द्रष्टिरत्न सहित ते जीव ज्यां जाय त्यां अनेक महिमायुक्त, अने सर्वे
ईंद्रियसुखनी मध्यमां रहेवा छतां धर्मसहित रहे छे, अने कल्याण–परंपरा
सहित, त्रणलोकने आश्चर्य करनार एवा धर्मचक्रवडे शोभे छे; अनंत
महिमायुक्त, दर्शनीय अने सुखनी खाण एवी तीर्थंकरविभूतिने पण ते उत्तम
धर्मात्मा पामे छे.