Atmadharma magazine - Ank 369
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: अषाढ : २५०० आत्मधर्म : २१ :
प्रसंशनीय छे; परंतु मिथ्यात्वरूपी झेरथी बगडेला एवा व्रत–ज्ञानादि ते
सारां नथी.
• सम्यक्त्व वगरनो जीव खरेखर पशुसमान छे; जन्मांधनी जेम ते धर्म–अधर्मने
जाणतो नथी.
दुःखोथी भरेला नरकमां पण सम्यक्त्व सहित जीव शोभे छे; तेना वगरनो जीव
देवलोकमां पण शोभतो नथी. केमके ते नरकनो जीव तो सारभूत एवा
सम्यक्त्वना माहात्म्यने लीधे त्यांथी नीकळीने लोकालोक–प्रकाशक तीर्थनाथ थशे;
अने मिथ्यात्वने लीधे भोगमां तत्पर एवो ते देवनो जीव आर्त्तध्यान वडे
मरीने स्थावर योनिमां जशे.
• त्रणकाळमां के त्रणलोकमां सम्यक्त्व समान धर्म बीजो कोई नथी; जगतमां ते
जीवने परम हितकर छे.
• सम्यक्त्व सिवाय बीजो कोई जीवनो मित्र नथी, बीजो कोई धर्म नथी, बीजुं
कोई सार नथी, बीजुं कोई हित नथी, बीजा कोई पिता–मातादि स्वजन नथी,
के बीजुं कोई सुख नथी. मित्र–धर्म–सार–हित–स्वजन–सुख ए बधुंय
सम्यक्त्वमां समाय छे.
• सम्यक्त्वथी अलंकृत ढेढ पण देवो–वडे पुजाय छे; परंतु सम्यक्त्व वगरनो जीव
त्यागी होय तोपण पदे–पदे निंदनीय छे.
• एक वखत सम्यक्त्वने अंतर्मुहूर्तमात्र पण ग्रहण करीने, जीव कदाचित् तेने
छोडी द्ये तोपण, चोक्कस ते अल्पकाळमां (पुन: सम्यक्त्वादि ग्रहण करीने)
मुक्ति पामशे.
जे भव्य जीवने सम्यक्त्व छे तेना हाथमां चिंतामणि छे, तेना घरे कल्पवृक्ष अने
कामधेनु छे.
• आ लोकमां निधाननी जेम सम्यक्त्व भव्य जीवोने सुखदाता छे; ते सम्यक्त्व
जेणे प्राप्त कर्युं तेनो जन्म सफळ छे.
जे जीव हिंसा छोडीने, वनमां जई एकलो वसे छे ने ठंडी–गरमी सहन करे छे–
पण जो सम्यग्दर्शन वगरनो छे–तो ते वनना झाड जेवो छे.