: २० : आत्मधर्म : अषाढ : २५००
सम्यक्त्व–महिमा
• हे वत्स! तुं परम भक्तिथी सम्यक्त्वने भज •
• प्रश्नोतर–श्रावकाचारना ११ मा अधिकारमां अष्टगुणसहित अने सर्व दोषरहित
एवा शुद्धसम्यक्त्वनो परम महिमा बतावीने तेनी आराधनानो उपदेश आप्यो
छे; तेमां १०८ श्लोक छे; तेनुं दोहन अहीं आप्युं छे.
• वीतराग–जिनधर्मनुं सेवन छोडीने, मिथ्याधर्मना सेवन वडे जे मूढ जीव
आत्मकल्याण ईच्छे छे ते जीववा माटे झेर खानार जेवो मूर्ख छे.
• बुधजनो अल्पज्ञान पामीने तेनो मद नथी करता; अरे, पूर्वना महान श्रुतधरो
पासे मारुं आ अल्पज्ञान शुं हिसाबमां छे?
• अरे, क्षणभरमां नष्ट थई जनार एवा शरीरबळनुं अभिमान शुं?
• विचित्र–अद्भुत सम्यग्दर्शननी–कळानी पासे लौकिक सुंदर–लेखनादि कळानुं
अभिमान करवुं ते पण अशुभ छे.
• जेम मलिन दर्पणमां मुख देखातुं नथी तेम मोहथी मलिन एवी मिथ्या श्रद्धामां
आत्मानुं साचुं रूप देखातुं नथी, मुक्तिनुं मुख तेमां देखातुं नथी.
• जेम निर्मळ दर्पणमां मनुष्यो पोताना रूपने अवलोके छे, तेम सम्यक्त्वरूपी
निर्मळदर्पणमां धर्मीजीव मुक्तिनुं मुख देखे छे, एटले पोतानुं साचुं रूप देखे छे.
• सम्यग्दर्शन सहित जीव विशेष ज्ञान–व्रतादि वगर पण ईन्द्र–तीर्थंकर वगेरे
विभूति पामे छे.
• ज्ञान–चारित्रादिनुं मूळ भगवाने सम्यगदर्शन कह्युं छे. तेना वगरनां ज्ञान ने
चारित्र ते अज्ञान अने कुचारित्र छे, एटले मोक्ष माटे निरर्थक छे.
• व्रत–चारित्र वगरनुं तेमज विशेष ज्ञान वगरनुं एकलुं सम्यक्त्व पण सारूं छे–