Atmadharma magazine - Ank 369
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: २० : आत्मधर्म : अषाढ : २५००
सम्यक्त्व–महिमा
• हे वत्स! तुं परम भक्तिथी सम्यक्त्वने भज •
प्रश्नोतर–श्रावकाचारना ११ मा अधिकारमां अष्टगुणसहित अने सर्व दोषरहित
एवा शुद्धसम्यक्त्वनो परम महिमा बतावीने तेनी आराधनानो उपदेश आप्यो
छे; तेमां १०८ श्लोक छे; तेनुं दोहन अहीं आप्युं छे.
• वीतराग–जिनधर्मनुं सेवन छोडीने, मिथ्याधर्मना सेवन वडे जे मूढ जीव
आत्मकल्याण ईच्छे छे ते जीववा माटे झेर खानार जेवो मूर्ख छे.
बुधजनो अल्पज्ञान पामीने तेनो मद नथी करता; अरे, पूर्वना महान श्रुतधरो
पासे मारुं आ अल्पज्ञान शुं हिसाबमां छे?
अरे, क्षणभरमां नष्ट थई जनार एवा शरीरबळनुं अभिमान शुं?
• विचित्र–अद्भुत सम्यग्दर्शननी–कळानी पासे लौकिक सुंदर–लेखनादि कळानुं
अभिमान करवुं ते पण अशुभ छे.
जेम मलिन दर्पणमां मुख देखातुं नथी तेम मोहथी मलिन एवी मिथ्या श्रद्धामां
आत्मानुं साचुं रूप देखातुं नथी, मुक्तिनुं मुख तेमां देखातुं नथी.
• जेम निर्मळ दर्पणमां मनुष्यो पोताना रूपने अवलोके छे, तेम सम्यक्त्वरूपी
निर्मळदर्पणमां धर्मीजीव मुक्तिनुं मुख देखे छे, एटले पोतानुं साचुं रूप देखे छे.
• सम्यग्दर्शन सहित जीव विशेष ज्ञान–व्रतादि वगर पण ईन्द्र–तीर्थंकर वगेरे
विभूति पामे छे.
• ज्ञान–चारित्रादिनुं मूळ भगवाने सम्यगदर्शन कह्युं छे. तेना वगरनां ज्ञान ने
चारित्र ते अज्ञान अने कुचारित्र छे, एटले मोक्ष माटे निरर्थक छे.
व्रत–चारित्र वगरनुं तेमज विशेष ज्ञान वगरनुं एकलुं सम्यक्त्व पण सारूं छे–