: ३० : आत्मधर्म : अषाढ : २५००
वांचको साथे वातचीत अने तत्त्वचर्चा
* स्वाधीन शोभतो मार्ग *
मार्ग सदा खुल्लो छे....
आनंदथी चाल्या आवो....
सम्यक्त्वादि मोक्षमार्ग छे ते स्वाश्रितभाव छे. पराश्रितभाव अशुद्ध होय छे ने स्वाश्रित–
भाव शुद्ध होय छे. स्वाश्रित एवा शुद्धभाववडे भवसागरने तराय छे–ए जैनशासननो
महासिद्धांत छे. अहो, स्वना आश्रये मुक्ति ने परना आश्रये बंधन–आवो महासिद्धांत समजावीने
वीतरागी संतोए महा उपकार कर्यो छे.
जीव परना आश्रये लाभ मानी–मानीने ज संसारमां रखडयो छे. संतो तेने स्व–परनी
भिन्नता बतावीने स्वनो आश्रय करावे छे. सर्वे संतोनुं हार्द अने आखो मोक्षमार्ग स्वाश्रयभावमां
समाय छे. तेमां क््यांय पराश्रय नथी.
वाह! केवो स्वाधीन शोभतो मार्ग! हे जीवो! आनंदथी चाल्या आवो...मार्ग सदा खुल्लो छे.
• राजकोटथी बहेन गीता अने अंजलि लखे छे के: आत्मधर्ममां भगवान महावीरनुं
वर्णन वांचीने, अने उत्सवनां चित्रो जोईने अमे खूब ज खुशी थया छीए;–जाणे मंगल श्री
परमागम मंदिर–प्रतिष्ठा महोत्सव नजरे देखाय छे. वांचतां–वांचतां आबेहुब चित्र खडुं थाय छे.
(साची वात छे बहेनो, जेम लेखो द्वारा धार्मिकभावो रजु थाय छे तेम चित्रोद्वारा पण धार्मिकभावो
रजु थाय छे.)
शोधी काढो–
जगतमां एक प्राणी एवुं छे के जो एने बांधी राखो तो ते बधे ठेकाणे फर्या करे. पण जो
तेने छूटुं मूको तो ते क््यांय एक पगलुं न जाय!
• जगतमां सर्वज्ञ भगवानना भक्तो झाझा? के सर्वज्ञ भगवान झाझा?
• आत्मप्रदेशो केटला छे?
–आत्मप्रदेशो लोकप्रमाणे असंख्यात छे.
• ते असंख्यात प्रदेशो एकी संख्यामां छे? के बेकी संख्यामां? –बेकी संख्यामां छे.
• आत्मप्रदेशो बेकी संख्यामां छे–ए कई रीते जाण्युं?
–ते आप विचारीने शोधी काढजो....आवता अंकमां अमे कहेशुं.
• “आत्मधर्म” मळ्युं; अहो, गुरुदेवे आपेलमंगल प्रभातनी बोणी अने सुप्रभातनुं
मंगलप्रवचन वांची खूबखूब आनंद थयो. साक्षात् वीतरागमार्गना आवा पथिकना
चरणोमां अमारुं मस्तक सदाय झूके छे.”
(–ज्योत्स्नाबेन जैन, कलकत्ता)