फोन नं. ३४ “आत्मधर्म” Regd. No. G. 128
आत्मामां ऊंडे–ऊंडे..........संसारथी दूर–दूर
भव्य मुमुक्षुजीवनी आनंद तरफ ढळती दशा
हे मुमुक्षु भव्य आत्मा! आ संसारनी अशांतिथी तुं थाकयो छे ने हवे कोई
परम शांतिनुं वेदन करवा तुं चाहे छे, तो तेने माटे तुं संसारना रागथी
छूटो पडीने ज्यां शांति भरी छे एवा अंर्ततत्त्वनो संग करजे, वारंवार तेनो
परिचय करजे.
हे भव्य! जे महान कार्य तीर्थंकरोने साध्युं ते महान कार्य तारे साधवानुं छे;
तो हवे तुं लौकिक जनोनी जेम प्रवर्तीश नहि, लोकोत्तर एवा अपूर्व भावे
भगवानना मार्गमां आवजे.
हे भाई! अत्यारसुधी तुं अशांतिमां ज रह्यो छो; साची शांति तें कदी जोई
नथी; एटले मार्गने साधतां जराक वार लागे तो तुं थाकीश नहि, शिथिल थईश
नहि, पण महान उत्साहपूर्वक एमां ज लाग्यो रहेजे...मार्ग जरूर खुली जशे. मार्ग
तो खुल्लो ज छे...जरूर छे तेनी साची भावनानी.
चैतन्यभावनानो वारंवार परिचय करतां मुमुक्षु अंदर आत्मामां ऊंडे–ऊंडे
ऊतरे छे, त्यारे तेने कंईक एवुं वेदन थाय छे के–अरे! अमे आ संसारना जीव
नथी, आवी अशांति वच्चे अमे रही शकीए नहि; अमे तो शांतिथी भरेली कोई
बीजी ज नगरीना छीए; पंचपरमेष्ठीभगवंतो जेमां वसे छे एवी कोई अद्भुत
नगरी ते ज अमारो देश छे. संसारथी दूर–दूर......अंदरमां ऊंडेऊंडे अमारो
चैतन्यदेश छे.–आम ते मुमुक्षुना परिणाम संसारथी हटीने चैतन्यनी शांतिमां
प्रवेशी जाय छे; अने तेमां प्रवेशीने पोताना अद्भुत चैतन्यनिधान देखतां तेने जे
अपूर्वआत्मिक आनंद–शांति ने तृप्ति वेदाय छे तेनी शी वात! (त्यां चैतन्यना
प्रकाशक : (सौराष्ट्र) प्रत : ३६००
मुद्रक : मगनलाल जैन, अजित मुद्रणालय : सोनगढ (364250) : अषाढ (३६९)