Atmadharma magazine - Ank 369
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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आत्माना अनुभवनी ऊंची वात!
[ऊंची तो खरी–पण थाय तेवी–ने जरूर करवा जेवी.]
कोई कहे के आत्माना अनुभवनी आ घणी मोटी वात,–एवो
अनुभव तो कोण जाणे कोने थतो हशे!
तो कहे छे के हे भाई! गृहस्थाश्रममां रहेला जीवो करी शके, एटले
ताराथी पण थाय–एवी आ वात छे. अरे, तुं जैन थयो, जिनवरना मार्गमां
आव्यो, अने भगवाने कहेला आत्मानुं ज्ञान तने न थई शके–ए केम बने?
भगवाने जे कांई कर्युं ते बधुंय करवानी ताकात तारामां छे. तारी
निजशक्तिने तुं संभाळ–एटली ज वार छे. आत्माना अनुभवनी वात घणी
ऊंची छे–ए खरूं, पण ते ताराथी थई शके तेवी छे. ऊंची छे–माटे नहि थई
शके एम नथी. एटले आ वातने ऊंची समजीने तेनो वधु महिमा लावजे, ने
तेमां वधु प्रयत्न करजे; पण ऊंची छे–एम कहीने तेनो प्रयत्न छोडी दईश
मा! वात ऊंची छे ने पोताना परम हितनी छे, माटे सर्व उद्यमथी ते श्रद्धा–
ज्ञानमां लेवा जेवी छे. ऊंची कहीने काढी नांखवा जेवी नथी. अरे, आत्माने
समजवानो आवो किंमती अवसर गुमावी न दईश. गृहस्थपणा वच्चे
रहेलो चोथा गुणस्थानवाळो जीव पण आवा आत्मानो अनुभव करे छे, ने
ते जीव तत्त्वज्ञानी छे, विचक्षण छे, मोक्षने साधवामां चतुर छे, विवेकी छे,
शास्त्रोए कहेला सिद्ध जेवा आत्माने अंतरनी द्रष्टिमां लईने तेना अतीन्द्रिय
आनंदनुं वेदन तेणे कर्युं छे. अने आवा आत्माने जे जाणतो नथी तेनुं बीजुं
बधुं भणतर तो थोथां जेवुं छे, तेमां कांई सार के हित नथी, तेना वडे
मोक्षनो मार्ग सधातो नथी. अरे, जे करवाथी आत्मा भवथी न छूटे ने
आत्माने मोक्षसुखनो स्वाद न आवे, ते तो बधुं असार छे; माटे तेनाथी
पाछो फर ने आत्मानुं हित थाय तेम कर. *
• मध्यप्रदेशमां छिन्दवाडा, इंदोर तथा विदिशा, अने दाहोदमां गतमासमां
शिक्षिर शिबिरो चालेली, ते प्रसंगे विद्वानोना प्रवचनोमां तेमज शिक्षण–
वर्गमां हजारो जिज्ञासुओए उत्साहथी लाभ लीधो हतो. विशेष
समाचार हिंदी–आत्मधर्ममांथी जाणी लेवा. *