तनकारन मिथ्यात दियो तज, कयों करि देह धरेंगे? अब हम
राग–द्वेष जग बंध करत है, ईनको नाश करेंगे... अब हम
नासी जासी, हम थिरवासी, चोखे हृै निखरेंगे... अब हम
‘द्यानत’ निपट–निकट दो अक्षर, बिन सुमरे सुमरेंगे... अब हम
वढवाणना भाईश्री चंदुलाल जगजीवनदास पारेखे लीधो हतो; सोनगढथी पू.
बेनश्री–बेन पण पधार्या हता, ने शिलान्यासनी मंगलविधिमां पू बंने
बहेनोए आनंदपूर्वक भाग लीधो हतो. वढवाण एक तो वर्द्धमानप्रभुनी
विहारभूमि, बीजुं भगवानना निर्वाणगमननुं २५०० मुं वर्ष, अने त्रीजुं पू.
श्री चंपाबेननुं मंगलजन्मधाम,–तेथी भक्तजनोने विशेष उल्लास हतो. शेठश्री
पोपटभाई वोरा, रमणीकभाई तलकशी, तथा चीमनलाल हिंमतलाल वगेरेए
उल्लासपूर्वक जिनमंदिर माटे फाळो आप्यो हतो. शिलान्यास माटेनी विधि
वेलुंवेलुं तैयार थाय, ने पंचकल्याणकपूर्वक वीरनाथ जिनेन्द्र वर्द्धमानपुरीमां
वेलावेला पधारे–एवी भावना साथे, वढवाणना मुमुक्षुओने धन्यवाद! (आ
अगाउ वढवाणमां एक दि. जिनमंदिर तो छे ज.) *
ते स्वभाव आराधतां अपूर्व शांति पमाय.