Atmadharma magazine - Ank 369
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: ३२ : आत्मधर्म : अषाढ : २५००
सम्यक्त्व थतां अमर थया–
अब हम...अमर भये न मरेंगे.................. अब हम...
तनकारन मिथ्यात दियो तज, कयों करि देह धरेंगे? अब हम
उपजे–मरे कालतें प्रानी तातें काल हरेंगे,
राग–द्वेष जग बंध करत है, ईनको नाश करेंगे... अब हम
देह विनाशी, मैं अविनाशी, भेदज्ञान करेंगे;
नासी जासी, हम थिरवासी, चोखे हृै निखरेंगे... अब हम
मरे अनंतबार बिन समझें अब सबदुःख विसरेंगे
‘द्यानत’ निपट–निकट दो अक्षर, बिन सुमरे सुमरेंगे... अब हम
• वढवाण शहेरमां श्री दि. जिनमंदिरना शिलान्यासनुं मंगलमूहूर्त अषाड सुद
आठमना मंगलदिवसे हर्षोल्लासपूर्वक थयुं हतुं. शिलान्यास करवानो लाभ
वढवाणना भाईश्री चंदुलाल जगजीवनदास पारेखे लीधो हतो; सोनगढथी पू.
बेनश्री–बेन पण पधार्या हता, ने शिलान्यासनी मंगलविधिमां पू बंने
बहेनोए आनंदपूर्वक भाग लीधो हतो. वढवाण एक तो वर्द्धमानप्रभुनी
विहारभूमि, बीजुं भगवानना निर्वाणगमननुं २५०० मुं वर्ष, अने त्रीजुं पू.
श्री चंपाबेननुं मंगलजन्मधाम,–तेथी भक्तजनोने विशेष उल्लास हतो. शेठश्री
पोपटभाई वोरा, रमणीकभाई तलकशी, तथा चीमनलाल हिंमतलाल वगेरेए
उल्लासपूर्वक जिनमंदिर माटे फाळो आप्यो हतो. शिलान्यास माटेनी विधि
भाईश्री हिंमतलाल जे. शाहे करावी हती. वर्द्धमानपुरीनुं भव्य जिनमंदिर
वेलुंवेलुं तैयार थाय, ने पंचकल्याणकपूर्वक वीरनाथ जिनेन्द्र वर्द्धमानपुरीमां
वेलावेला पधारे–एवी भावना साथे, वढवाणना मुमुक्षुओने धन्यवाद! (आ
अगाउ वढवाणमां एक दि. जिनमंदिर तो छे ज.) *
हर्ष–खेदथी पार जे, एवो ज्ञानस्वभाव;
ते स्वभाव आराधतां अपूर्व शांति पमाय.