Atmadharma magazine - Ank 370
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण–भाद्र : रप०० आत्मधर्म : प :
अपूर्व उमंगभर्या वातावरणमां प्रवचनसारनो प्रारंभ
वीतरागसंतोए मांडी छे परम आनंदनी परब.
पिासु जीवो आवो.ने आनंदरसने पीओ.
आत्माना अतीन्द्रियआनंदरूप ने सुखरूप परिणमेला भगवंत
पंचपरमेष्ठीनी पधरामणी–पूर्वक, परमआनंदनी परब जेवुं आ
प्रवचनसार–परमागम आजे (श्रावण सुद सातमे) शरू थाय छे.
श्रावण सुद सातमे ‘मोक्षसप्तमी’ कहेवाय छे–आजे सम्मेदशिखरनी
सुवर्णभद्र टूंक परथी पारसनाथप्रभु मोक्ष पधार्या छे. अहो, ते मोक्षसुख
एटले के आत्मानुं अतीन्द्रियसुख, तेनी प्राप्तिनो मार्ग बतावनारुं आ
प्रवचनसार आजे प्रवचनमां शरू थाय छे.
स्वसंवेदन–प्रत्यक्ष एवो ज्ञानस्वरूप हुं–आत्मा, पंचपरमेष्ठी
भगवंतोने मारा ज्ञानमां साक्षात् वर्तमानकाळगोचर करीने, नमस्कार
करुं छुं.–आ रीते मोक्षनी आराधनाना महोत्सवमां पंचपरमेष्ठी
भगवंतोने बोलावीने आचार्यदेवे अपूर्व मंगळ सहित प्रवचनसारनो
प्रारंभ कर्यो छे. ते प्रवचनसार उपर आजे छठ्ठी वखत प्रवचनो शरू
थाय छे. परमानंदना पिपासु भव्य जीवो तेमां झरता शांतरसनुं पान
करीने तृप्त थाओ.
(–सं.)
आजे आ प्रवचनसार शास्त्रनी मंगळ शरूआत थाय छे. भगवान