Atmadharma magazine - Ank 370
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण–भाद्र : रप०० आत्मधर्म : र३ :
* कोई एम माने के जेटला ज्ञानना पर्याय छे ते समस्त अशुद्ध छे,–परंतु एम तो
नथी, कारण के जेम ज्ञान शुद्ध छे तेम ज्ञानना पर्याय वस्तुनुं स्वरूप छे तेथी
शुद्धस्वरूप छे.
* विशेष एटलुं समजवुं के, मात्र पर्यायभेदने पकडतां विकल्प ऊपजे छे, ज्ञाननो
अनुभव निर्विकल्प छे, तेथी वस्तुमात्र अनुभवतां समस्त पर्यायो पण
ज्ञानमात्र छे.–आवो ज्ञानमात्र आत्मा अनुभवयोग्य छे. तेनी श्रद्धा, तेनुं ज्ञान,
तेनुं आचरण ते मोक्षमार्ग छे. आवी आत्मअनुभूति ते आनंद देनारी दिव्य
औषधि छे, तेना सेवनथी आत्माना सर्वप्रदेशे आनंदनो झणझणाट थाय छे.
धर्मात्मानुं प्रमाणज्ञान द्रव्य–गुण–पर्यायरूप यथार्थ वस्तुस्वरूप जाणे छे
जेनां द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणे शुद्ध चेतनमय छे एवा आत्मानुं स्वरूप जाणतां
प्रमाणज्ञान थयुं, एटले भेदज्ञान अने सम्यग्ज्ञान थयुं. सम्यग्ज्ञाने आत्मानुं
जेवुं स्वरूप जाण्युं तेवा ज आत्मानी निःशंक श्रद्धा करी ते सम्यग्दर्शन थयुं.
सम्यग्ज्ञान (–प्रमाणज्ञान) नी साथे ज सम्यग्दर्शन नियमथी होय छे; आ रीते
सम्यग्ज्ञाने जाणेला आत्मतत्त्वनुं श्रद्धान ते ज सम्यग्दर्शन छे. सम्यग्ज्ञाने जे
वस्तुस्वरूप जाण्युं तेनाथी विरुद्ध श्रद्धा होती नथी. एटले जाणेलानुं श्रद्धान ते ज
सम्यग्दर्शन छे; जाण्या वगर श्रद्धा कोनी? ज्ञान वगरनी श्रद्धाने तो ‘ससलाना
शींगडा’ नी जेम असत्नी श्रद्धा कही छे, एटले के एवी श्रद्धा मिथ्या छे. माटे
यर्थाथ ज्ञानथी वस्तुस्वरूप जाणीने तेनी श्रद्धा करवी जोईए.
* चेतनमय शुद्ध द्रव्य–गुण–पर्यायरूप जेवुं आत्मस्वरूप छे तेवा आत्मानुं ज्ञान ते
सम्यग्ज्ञान छे, तेनुं श्रद्धान ते सम्यग्दर्शन छे, ने तेमां एकाग्रतारूप वीतराग
परिणति ते सम्यक्चारित्र छे.–आ रीते आत्माना ज आश्रये मोक्षमार्ग छे.
खास सूचना:– माननीय प्रमुखश्री तरफथी खास जणाववामां आवे छे के
प्रतिष्ठामहोत्सवनो हिसाब बंध करवानो होवाथी, जेमनी ऊछामणी वगेरेनी रकमो
बाकी छे तेमने “श्री परमागम मंदिर पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव समिति” ना
नामथी बेन्क ओफ ईन्डिया (सोनगढ) उपरनो, अथवा तो भावनगरनी गमे ते बेन्क
उपरनो, ड्राफट जेम बने तेम तुरत मोकली आपवा विनंती छे.
श्री परमागम मंदिर प्रतिष्ठा महोत्सव समिति, सोनगढ (३६४रप०)