Atmadharma magazine - Ank 370
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण–भाद्र : रप०० आत्मधर्म : रप :
पंचपरमेष्ठी भगवंतोने आत्मामां
बोलावीने शुद्धोपयोगनी झणझणाटी
बोलावतुं अपूर्व मंगलाचरण
(वीर सं. रप०० श्रावण सुद १०)
प्रवचनसारनी मंगळगाथाओ आजे शरू थाय छे. तेना उपोद्घातमां
अमृतचंद्राचार्यदेव श्री कुंदकुंदाचार्यदेवनी ओळखाण आपे छे–
अहो, आ सूत्रकर्ता आचार्य परमदेवने संसारसमुद्रनो किनारो नजीक आवी
गयो छे...मोक्षदशा एकदम नजीक आवी गई छे एटले तेओ आसन्नभव्य छे. हजार
वर्ष पहेलांं थयेला आचार्यदेवनी अंतरंग अनुभवदशाने पोतानी स्वानुभूति सहित
ओळखीने कहे छे के अहो, आवा अलौकिक आत्मवैभववाळा वीतरागी संतनुं आ
कथन छे.
ते कुंदकुंदाचार्यदेव सातिशय–भेदज्ञान ज्योतिवाळा छे. जेम सातिशय सातमा
गुणस्थानवाळा उपर श्रेणी चडे छे, तेम आचार्यदेवनी भेदज्ञानज्योति एवी अतिशयवाळी
छे के केवळज्ञान लेशे,–अप्रतिहतरूपे आगळ वधीने केवळज्ञानने प्रगट करशे.
भेदज्ञाननी अनेकान्तविद्यावडे, मिथ्यारूप एकांतविद्यानो जेमने अस्त थई गयो
छे. अहो, अनेकांतनो अमोघ–मंत्र सर्व अविद्यानो नाश करी नांखे छे. आचार्यदेवने
अनेकांतरूप महान वीतरागीविद्या खीली गई छे, ते तो जिनेश्वरी–विद्या छे. आवी
पारमेश्वरीविद्या उपरांत शुद्धोपयोगना बळे राग–द्वेषनो अभाव करीने एवा मध्यस्थ
थया छे के क््यांय पक्षपात नथी. कोईने राजी करवा माटे के कोईनी निंदा करवा माटे
तेमनी प्रवृत्ति नथी, वीतरागभावथी मोक्षने साधवा माटे शुद्धोपयोगी चारित्रमां
जेमनी प्रवृत्ति छे, वच्चे जराक राग आवे तेने ओळंगी जवा मांगे छे.
मोक्षलक्ष्मीने ज आचार्यदेवे उपादेयपणे नक्की करी छे. सर्व पुरुषार्थमां सारभूत