Atmadharma magazine - Ank 370
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: र६ : आत्मधर्म : श्रावण–भाद्र : रप००
एवी मोक्षदशा ज आत्माने सर्वथा हितरूप छे; ने पंचपरमेष्ठीना प्रसादथी ते उत्पन्न
थाय छे; ते ज अविनाशी छे ने उपादेय छे.
अहो, पंचपरमेष्ठी भगवंतो! तमारा मार्गने अनुसरतां मोक्षलक्ष्मी प्रगटे छे.
श्रीगुरुओए प्रसन्न थईने अनुग्रहपूर्वक शुद्धात्मतत्त्वनो उपदेश अमने प्रसादीरूपे
आप्यो, तेनाथी अमने निजवैभव प्रगट्यो छे,–एम समयसारनी पांचमी गाथामां कह्युं
छे; अहीं पंचपरमेष्ठीना प्रसादथी मोक्ष थवानी वात करी; एटले तेमणे जेवो कह्यो तेवो
भाव लक्षमां लेतां आत्मानो अनुभव थईने परम आनंद सहित मोक्षना दरवाजा
खुली जाय छे.–आवी दशारूपे थयेला प्रभु कुंदकुंदस्वामी अनुग्रहपूर्वक आ प्रवचनसार
संभळावे छे...मोक्षना मंगल मांडवा रोपे छे ने तेमां पंचपरमेष्ठीने बोलावे छे.
अहो, आवा समर्थ आचार्यभगवान जिनप्रवचनना सारभूत आ परमागम
संभळावे छे, तो हे भव्यजीवो! तमे परम आनंदना पिपासु थईने, प्रशमभावना लक्षे
अत्यंत बहुमानथी तेनुं श्रवण करजो. तेना फळमां मोहनो नाश थईने तमने परम
अतीन्द्रिय आनंदनी अनुभूति थशे.
पांचमी गाथामां कह्युं के–मारा आत्मवैभवथी हुं जे शुद्ध एकत्व–विभक्त आत्मा
देखाडुं छुं तेने हे भव्यजीवो! तमे तमारा स्वानुभवथी कबुल करजो. अमारी
निजवैभवनी वात सांभळीने तेना भावने समजतां जरूर शुद्धआत्मा अनुभवमां
आवशे. जेणे आवो अनुभव कर्यो ते कहे छे के अहो प्रभो! आपना प्रसादथी मने
शुद्धात्मप्राप्ति थई...मारा उपर आपनी कृपा थई...आप मारा उपर प्रसन्न थया.
आपना प्रसादथी शुद्धात्माना श्रद्धा–ज्ञानपूर्वक अमे परमहितरूप मोक्षलक्ष्मीने उपादेय
करी छे.
जुओ, आवी शुद्धदशारूपे परिणमेला आचार्यदेव मोक्षने साधवाना महान
आनंदप्रसंगे, श्री वर्द्धमानदेव सहित पंचपरमेष्ठी भगवंतोने नमस्कारपूर्वक संभावे छे,
तेमनो आदर करे छे, अने सर्व उद्यमपूर्वक पोते पण मोक्षमार्गरूपे परिणमे छे...
मोक्षमार्गरूपे परिणमीने मोक्षने साधतां–साधतां आचार्यदेवे आ रचना करी छे. गाथा
१९९ मां कहे छे के अमे मोक्षमार्ग अवधारित कर्यो छे ने कृत्य कराय छे. मोक्षने
साधवानुं काम चाली ज रह्युं छे. अमारा आत्माए मोक्षमार्गनो आश्रय कर्यो छे...ने
तेमां पण शुद्धोपयोगने अंगीकार करीए छीए.
ए वात पांच रत्नो जेवी पांच मंगल गाथा द्वारा कहे छे–