
थाय छे; ते ज अविनाशी छे ने उपादेय छे.
आप्यो, तेनाथी अमने निजवैभव प्रगट्यो छे,–एम समयसारनी पांचमी गाथामां कह्युं
छे; अहीं पंचपरमेष्ठीना प्रसादथी मोक्ष थवानी वात करी; एटले तेमणे जेवो कह्यो तेवो
भाव लक्षमां लेतां आत्मानो अनुभव थईने परम आनंद सहित मोक्षना दरवाजा
संभळावे छे...मोक्षना मंगल मांडवा रोपे छे ने तेमां पंचपरमेष्ठीने बोलावे छे.
अत्यंत बहुमानथी तेनुं श्रवण करजो. तेना फळमां मोहनो नाश थईने तमने परम
अतीन्द्रिय आनंदनी अनुभूति थशे.
निजवैभवनी वात सांभळीने तेना भावने समजतां जरूर शुद्धआत्मा अनुभवमां
आवशे. जेणे आवो अनुभव कर्यो ते कहे छे के अहो प्रभो! आपना प्रसादथी मने
शुद्धात्मप्राप्ति थई...मारा उपर आपनी कृपा थई...आप मारा उपर प्रसन्न थया.
आपना प्रसादथी शुद्धात्माना श्रद्धा–ज्ञानपूर्वक अमे परमहितरूप मोक्षलक्ष्मीने उपादेय
करी छे.
तेमनो आदर करे छे, अने सर्व उद्यमपूर्वक पोते पण मोक्षमार्गरूपे परिणमे छे...
मोक्षमार्गरूपे परिणमीने मोक्षने साधतां–साधतां आचार्यदेवे आ रचना करी छे. गाथा
१९९ मां कहे छे के अमे मोक्षमार्ग अवधारित कर्यो छे ने कृत्य कराय छे. मोक्षने
तेमां पण शुद्धोपयोगने अंगीकार करीए छीए.