Atmadharma magazine - Ank 370
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण–भाद्र : रप०० आत्मधर्म : ३१ :
परम समभावरूप छे. कुंदकुंदस्वामी कहे छे के मोक्षने माटे हुं आवा वीतरागचारित्रने
अवलंब्यो छुं.
वाह रे वाह! वीतरागी संतो, तमारी दशा! तमे चैतन्यनी वीतरागी
शांतिना बरफमां जामी गया छो. तेमां कषाय–अग्निनो कणियो रही शके नहि.
नमस्कार हो आवा वीतराग संत भगवंतने.
अमृतचंद्रदेव कहे छे के ‘आमणे–मारा गुरुए आ रीते साक्षात्
मोक्षमार्गने अंगीकार कर्यो. ’–आ सांभळतां मुमुक्षु श्रोताने पण एम प्रमोद
आवे छे के वाह, मारा गुरु केवा महान छे! एमनी अंतरस्थिति केवी
वीतरागभावथी शोभी रही छे! आवा महात्मा गुरु अमने मळ्‌या...तो अमे
पण तेमना पंथने अनुसरीने मोक्षमार्गने अंगीकार करी रह्या छीए. वाह!
मोक्षना मार्गमां गुरु–शिष्यना भावोनी केवी अपूर्व संधि छे!
ज्ञान गोष्ठी–
–वा–व–वा–वा–व–व–व–वा–वा–व–व
उपरना शब्दोमां ११ लीटी छे ते जग्याए एक ज अक्षर मुकवाथी आत्मानी
सात शक्ति प्राप्त थवानुं जणाव्युं हतुं. ते अक्षर ‘भा’–बधी लीटीनी जग्याए भा अक्षर
मुकवाथी नीचे मुजब थाय छे–
भावाभावभावाभावाभावभावभावभावाभावाभावभाव
हवे योग्य रीते संधी छूटी पाडतां तेमां नीचे मुजब सात शक्तिनां नाम थाय छे–
भाव, अभाव, भावाभाव, अभावभाव, भावभाव, अभावअभाव, भाव
समयसारमां आत्मानी जे ४७ शक्तिओनुं वर्णन कर्युं छे तेमां नंबर ३र थी ३९
मां उपरनी सात शक्तिनुं वर्णन छे; तेनी व्याख्या समयसारमांथी जोई लेवी; अने
विस्तारथी तेनुं स्वरूप समजवा माटे ‘आत्मवैभव’ नामनुं घणुं ज सुंदर पुस्तक
वांचवुं. ४८० पानां अने किंमत मात्र ३=प० (पोस्टेज १=प०)