जो तेने छूटुं मुको तो ते क््यांय एक पगलुं पण न जाय!
–ते प्राणी छे जीव. जीवतत्त्व एवुं छे के ज्यारे ते बंधनमां होय त्यारे तो ते चारे
गतिमां बधे फर्या करे छे; पण जो ते छूटुं होय एटले मुक्त होय तो ते सदाकाळने माटे
सिद्धालयमां स्थिर रहे छे, पछी तेने क््यांय गमनागमन थतुं नथी.
जगतमां सर्वज्ञभगवंतो (–सिद्धभगवंतो) अनंता छे; ते सर्वज्ञना भक्तो एटले के
साधकजीवो तो असंख्यात ज छे.–आ रीते भक्तो थोडा छे ने भगवंतो झाझा छे.
आखा लोकना प्रदेशो जेटला ज एकेक जीवना प्रदेशो छे, ने ते असंख्यातप्रदेशो बेकी
जे वस्तुनो, के जे संख्यानो बराबर वचलो भाग बेकी होय ते वस्तुना समस्त
वस्तुना समस्त प्रदेशो पण एकीसंख्यामां ज होय. हवे जीव ज्यारे केवलि–समुद्घात करे छे
त्यारे ते लोकव्यापी थाय छे, ने लोकना प्रत्येकप्रदेशे जीवनो एकेक प्रदेश रहे छे; त्यारे लोकनी
बराबर मध्यना जे आठ प्रदेशो (–के जेनुं स्थान मेरूपर्वतना तळीये छे ते आठ मध्य प्रदेशो)
मां जीवना आठ प्रदेशो रहे छे, जेने ‘रुचकप्रदेश’ कहेवाय छे. आ रीते जेना मध्यप्रदेशो आठ
छे एवा जीवना असंख्यप्रदेशो बेकी संख्यामां ज छे.
–हा; असंख्यमां के अनंतमां पण एकी के बेकीनो व्यवहार संभवी शके छे. जेमके–