Atmadharma magazine - Ank 370
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: ३र : आत्मधर्म : श्रावण–भाद्र : रप००
वांचको साथे वातचीत अने तत्त्वचर्चा
[सर्व जिज्ञासुओनो प्रिय विभाग]
तांकमां, जवाब शोधी काढवा माटे जे त्रण प्रश्नो आपेला तेना जवाब नीचे मुजब छे–
जगतमां एक प्राणी एवुं छे के जो एने बांधी राखो तो ते बधे ठेकाणे फर्या करे; पण
जो तेने छूटुं मुको तो ते क््यांय एक पगलुं पण न जाय!
–ते प्राणी छे जीव. जीवतत्त्व एवुं छे के ज्यारे ते बंधनमां होय त्यारे तो ते चारे
गतिमां बधे फर्या करे छे; पण जो ते छूटुं होय एटले मुक्त होय तो ते सदाकाळने माटे
सिद्धालयमां स्थिर रहे छे, पछी तेने क््यांय गमनागमन थतुं नथी.
जगतमां सर्वज्ञभगवान झाझा? के सर्वज्ञभगवानना भक्तो झाझा?
जगतमां सर्वज्ञभगवंतो (–सिद्धभगवंतो) अनंता छे; ते सर्वज्ञना भक्तो एटले के
साधकजीवो तो असंख्यात ज छे.–आ रीते भक्तो थोडा छे ने भगवंतो झाझा छे.
• मध्यलोकमां असंख्यात द्वीप–समुद्रो, तेमां सौथी मोटो स्वयंभूरमण–समुद्र; ते
स्वयंभूरमणसमुद्रना प्रदेशो करतांय असंख्यातगणा प्रदेशोवाळो मोटो एकेक जीव छे.
आखा लोकना प्रदेशो जेटला ज एकेक जीवना प्रदेशो छे, ने ते असंख्यातप्रदेशो बेकी
संख्यामां छे.
जीवना प्रदेशो बेकी–संख्यामां केम छे तेनो खुलासो–
जे वस्तुनो, के जे संख्यानो बराबर वचलो भाग बेकी होय ते वस्तुना समस्त
प्रदेशो पण बेकी संख्यामां ज होय; अने जे वस्तुनो बराबर वचलो भाग एकी होय ते
वस्तुना समस्त प्रदेशो पण एकीसंख्यामां ज होय. हवे जीव ज्यारे केवलि–समुद्घात करे छे
त्यारे ते लोकव्यापी थाय छे, ने लोकना प्रत्येकप्रदेशे जीवनो एकेक प्रदेश रहे छे; त्यारे लोकनी
बराबर मध्यना जे आठ प्रदेशो (–के जेनुं स्थान मेरूपर्वतना तळीये छे ते आठ मध्य प्रदेशो)
मां जीवना आठ प्रदेशो रहे छे, जेने ‘रुचकप्रदेश’ कहेवाय छे. आ रीते जेना मध्यप्रदेशो आठ
छे एवा जीवना असंख्यप्रदेशो बेकी संख्यामां ज छे.
–असंख्यने के अनंतने पण एकी के बेकी कही शकाय?
–हा; असंख्यमां के अनंतमां पण एकी के बेकीनो व्यवहार संभवी शके छे. जेमके–
गणतरीथी स्पष्ट समजवा माटे–