अमृत पीवडाव्युं छे. अने, तेओश्रीना अंतरमां वर्तती आवी आत्म–आराधनाने लीधे
ज तेओश्रीनुं जीवन महान पवित्र–पूज्य अने प्रशंसनीय छे. तेमनी ए आराधनाने
ओळखवी ए ज तेमना प्रत्येनी सर्वोत्कृष्ट भक्ति छे ने ए ज तेमनो साचो महोत्सव
छे. अहा, जे जन्ममां आवी आराधना प्राप्त थई तेनो जेटलो उत्सव करीए तेटलो
ओछो छे. तेथी गुरुदेव पण प्रमोदथी कहेता हता के लोकोने घणो उत्साह छे.–पण
आराधक धर्मात्मानो तो जेटलो महिमा करीए एटलो ओछो छे. वाह! आत्मआराधना
ए जगतमां सर्वोत्कृष्ट सुंदर वस्तु छे. एवी आराधना वडे शोभता धर्मात्मा, बीजा
जीवोने पण आराधनानी महान प्रेरणा आपे छे.–अने, एवी आराधनामां पोताना
आत्माने जोडीने ज आराधक महात्माओनी सत्य भक्ति थाय छे.
थता जाय छे, ने तेना ज्ञानमां धर्मात्माना गुणोनुं वधु ने वधु बहुमान जागतुं जाय छे;
अंते तेनी पराकाष्ठाए पहोंचतां पोते पण तेवा गुणोनी अनुभूति करे छे.
अंतेवासी एवा पू. शांताबेने वांचनमां पण पू. बेनश्री चंपाबेन प्रत्ये उपकार–बुद्धिथी
कह्युं के पू. बेनश्रीनो मारा उपर तो महान उपकार छे; तेमना प्रतापे मने आत्मानो
महान लाभ थयो छे. ’ बेन द्वारा पू. बेनश्रीने श्रीफळ अर्पण करीने अभिनंदवानुं ए
समयनुं द्रश्य मुमुक्षुओने भावविभोर करतुं हतुं.
तीर्थंकरप्रभुनी सभानुं द्रश्य तथा भविष्यनी तीर्थंकरसभानुं द्रश्य बताववामां आव्युं छे,
ने पू. बेनश्रीना आत्मा ते बंने पर्यायमां तीर्थंकरनो उपदेश झीली रहेल छे; तथा वच्चे
तेमनी वर्तमानदशानी शांतमुद्रानुं दर्शन थाय छे.–आ जे चांदीनी प्रतिकृति छे तेमां जाति–