: श्रावण–भाद्र : रप०० आत्मधर्म : ३प :
छीए...जेम भगवाननी धर्मसभामां कोईने (सिंह अने हरणने, सर्प अने नोळीयाने–
वगेरे जाति–विरोधीओने पण) वेरविरोधनी लागणीओ रहेती नथी, मैत्रीभाव ज रहे
छे, तेम आपणामां सौमां (महावीरना समस्त भक्तोमां) क््यांय परस्पर कलेश के
वेरविरोधनी वृत्ति न होय, होय तो दूर थईने अत्यंत मैत्रीभाव वर्ते, धार्मिकस्नेहनी
पवित्र धारा वधु ने वधु वहेती थाय; एकबीजाना सुखना पोषक ने दुःखना हारक
बनीए, ए सौनुं कर्तव्य छे. ‘सत्वेषु मंत्रो गुणीषु प्रमोदं... ’ अहा, केवी मजानी सुंदर
भावना आपणा वीतरागशासनमां भरी छे!
बहारना बाग–बगीचा के दवाखाना करवा करतां सौथी पहेलांं साधर्मीओ तरफ
ध्यान आपशो. भगवानमहावीरनुं शासन जैन–साधर्मीओ वडे शोभशे. परदेशीओमां
प्रचारनी धून करतां स्वदेशना साधर्मीओमां महावीरप्रभुना तत्त्वज्ञाननो प्रचार थाय,
ने धर्मसेवनमां कोई पण साधर्मीने कंई पण कष्ट न रहे–तेम करवुं अत्यंत जरूरी छे.
विशेष घणुं करवानुं छे ते हवे पछी लखीशुं.
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• पू. बेनश्रीनो जन्मोत्सव एटले स्वानुभूतिनो मंगलोत्सव •
भारतना एकेएक मुमुक्षु जेमना प्रसिद्ध महिमाने जाणे छे, ने जेमनी प्रशंसाना
उद्गार गुरुदेवना श्रीमुखथी पण झरे छे, एवा स्वानुभूतिसम्पन्न पू. बेनश्री
चंपाबेननी ६१ मी जन्मजयंतीनो महोत्सव सोनगढमां खूब आनंद–उल्लासथी
उजवायो हतो...बहारगामथी घणा मुमुक्षुओए सोनगढ आवीने आ मंगल उत्सवमां
भाग लीधो हतो, ने सौए पोतानी प्रसन्नता व्यक्त करी हती. आपणे अहीं तेना खास
प्रयोजनभूत प्रसंगोनुं ज अवलोकन करीशुं.
• मंगल सन्देश •
जन्मोत्सवनी खुशालीमां मुमुक्षुसमाज दर्शन करवा गयेल त्यारे पू. बेनश्रीए
चैतन्यनी प्रसादीरूपे मंगल वचनोमां कह्युं के–
“आनंदमय चैतन्यतत्त्व छे ते ज जगतमां परम सर्वोत्कृष्ट तत्त्व छे.
आवा आत्मानी आराधना जीवनमां करवा जेवी छे. बाकी तो बधा बहारना
ठाठमाठ छे. अंदर देहथी जुदुं, रागथी जुदुं चैतन्यतत्त्व उत्कृष्ट छे, तेनी
ओळखाण, श्रद्धा ने लीनता करवी ते ज करवा जेवुं छे.”