Atmadharma magazine - Ank 370
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: ३४ : आत्मधर्म : श्रावण–भाद्र : रप००
हमणां दीवाळी आवशे ने आपणा महावीरतीर्थंकरना मोक्षगमनना पच्चीससो
वर्ष पूरा थशे...अहा, मोक्षपद एटले जगतनुं सर्वोत्कृष्ट पद,–ते मोक्षनो महोत्सव ए
जगतनो सर्वोत्कृष्ट मंगल महोत्सव छे.–आवो उत्सव, अने तेमां पण अढीहजार वर्षनी
पूर्णतानो भव्य उत्सव, आपणा जीवनना अवसरमां ज उजववानुं सौभाग्य आपणने
मळी रह्युं छे.–तो अंतरमां आपणे आपणा आत्माने मोक्षसन्मुख करीने, अने बहारमां
तन–मन–धन–सर्व प्रकारथी, आ महान मोक्षउत्सवने शोभावीए...ने वीरनाथना
शासननी खूब–खूब सेवा करीए ते आपणुं कर्तव्य छे; ने तेमां आपणे समस्त जैनो
एकमत छीए.
हवे एकमतथी नक्की थयेलुं जे आपणुं कर्तव्य, तेनी सिद्धि माटे आपणे शुं
करवुं? तेनो थोडोक विचार अहीं रजु करीए छीए–
सौथी पहेलांं आपणा सर्वज्ञ–वीतराग महावीर भगवाननुं स्वरूप ओळखीने,
तेमणे कहेला मोक्षमार्गनुं (–सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनुं) सत्य स्वरूप ओळखीने, ते
मार्गने साधवा माटे तत्पर बनीए, ने तेनो प्रचार करीए. महावीर प्रभुना सर्वोत्कृष्ट
वीतरागमार्गने जगतना बीजा कोई मार्ग साथे न सरखावीए, बीजा मार्ग तरफ न
जईए, ने महावीरप्रभुना ज मार्गे जईए.–आ मूळभूत पायो दरेक जैनमां हशे तो ज
आपणे महावीरभगवानना मोक्षना भव्य उत्सवनो महेल तैयार करी शकीशुं.
समाजद्रष्टिए, एटले के महावीरभगवानना भक्त तरीके बधा जैनसमाजे,
परस्परना वेरविरोध वगर एक थईने रहेवानुं छे.–कई रीते?–जाणे के
महावीरभगवान आजे आपणी सन्मुख बिराजी रह्या छे, ने आपणे सौ प्रभुना
धर्मदरबारमां बेठा