Atmadharma magazine - Ank 370
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: र : आत्मधर्म : श्रावण–भाद्र : रप००
अतीन्द्रियज्ञान ने अतीन्द्रियसुखनी मंगल वीणा
आचार्यदेव विदेहक्षेत्रमां गया...अतीन्द्रिय ज्ञान ने
अतीन्द्रियसुखरूपे परिमणेला तीर्थंकरदेवने अने केटलाय
केवळीभगवंतोने नजरे नीहाळ्‌या, शुद्धोपयोगरूपे परिणमी–
परिणमीने केवळज्ञानने साधी रहेला गणधरादि वीतरागसंतोना
टोळांने नजरे देख्या, पोताना आत्मामांय एवा शुद्धोपयोगनी
धारा वहेती हती; अने वळी
कारध्वनिरूपे जिनप्रवचनमां
अतीन्द्रिय ज्ञान–सुखनुं साक्षात् श्रवण कर्युं...ए बधायनो धोध
आचार्यदेवे आ प्रवचनसारमां रेडयो...अने तेना द्वारा जाणे के
भरतक्षेत्रना जीवोने अतीन्द्रियज्ञान ने अतीन्द्रियआनंदनी ज
भेट आपी. आजे कुंदकुंदस्वामीनी ए महान भेट कहानगुरु
आपणने आपी रह्या छे...ने अतीन्द्रिय ज्ञान–आनंदरसना घूंटडा
पीवडावी रह्यां छे. लीजीये...चैतन्यरस पीजीये.