Atmadharma magazine - Ank 371
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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आ जगतनी बधी दुर्लभ वस्तुओमां पण सम्यग्दर्शन–
ज्ञान–चारित्र सौथी दुर्लभ छे,–एम जाणीने हे भव्यजीवो!
तमे ते त्रणेयनो महान आदर करो. (–कार्तिकस्वामी)
* * *
रे! रत्नत्रय नहि पामीने जीव दीर्घ संसारे भम्यो;
जिनवर कहे छे एम, तेथी रत्नत्रयने आचरो.
(–कुंदकुंदस्वामी)
* * *
रयणत्तयमाराहं जीवो आराहओ मुणेयव्वो ।
आराहणा विहाणं तस्स फलं केवलं णाणं ।।
रत्नत्रयनी आराधना करनार जीवने आराधक जाणवो.
अने तेनी आराधनाना विधाननुं फळ केवळज्ञान छे.
(–मोक्षप्राभृत)
* * *
रत्नत्रयनी आराधना ए आत्मानी ज आराधना छे.
तंत्री : पुरुषोत्तमदास शिवलाल कामदार * संपादक : ब्र. हरिलाल जैन
वीर सं. २५०० द्वि.–भाद्र (लवाजम : चार रूपिया) वर्ष ३१ : अंक ११