Atmadharma magazine - Ank 371
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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• आत्मशुद्धिनी वृद्धिनो उत्सव •
भगवान महावीर–भवथी तरवा माटे आपणने मोक्षनो स्वाश्रित मार्ग
बतावनारा तीर्थंकर!–जो आपणे रागने एककोर राखीने, अने ज्ञानने २५००
वर्ष लंबावीने जोईए तो आपणी सन्मुख ज एक सर्वज्ञ अने पूर्ण
आनंदस्वरूप परमात्मा आपणने साक्षात् देखाय छे : आ रह्या भगवान! ने
आ रह्यो एमनो सुंदर मार्ग! नमस्कार हो तेमने.
वहाला साधर्मीओ! केवा महाभाग्य छे आपणा–के आजेय आपणने आवा
सर्वज्ञदेव, अने तेमनो मार्ग गुरुप्रतापे प्राप्त छे; ने तेनो महान उत्सव आपणे
ऊजवी रह्या छीए. आपणा उत्सवनुं ध्येय छे ‘आत्महित’. केम आत्महित
थाय, ने एकबीजाने आत्महितमां ज पुष्टि करीए–ए रीते सर्वशक्तिथी आ
उत्सव आपणे उजवीशुं. गुरुदेवे निर्वाणोत्सवनी मिटिंग वखते टूंकामां घणुं
कही दीधुं छे ‘आपणे तो आत्मानी शुद्धिनी वृद्धि थाय–ते खरो उत्सव छे.’–आ
मूळभूत वात सलामत राखीने पछी बीजी बधी वात छे.
बंधुओ, आपणुं आत्मधर्म गुरुदेवनी मंगलछायामां, गंभीरतापूर्वक आ
ध्येयनी प्रेरणा आपवानुं कार्य करी रह्युं छे. दिवसे–दिवसे तेनी शैलि वधु ने वधु
विकसी रही छे. हजी पण तेना वधु विकास माटे, के तेमां रहेली गंभीरता
बराबर न समजवाना कारणे, कोई जिज्ञासुने कांई प्रश्न ऊठे के सूचना करवानी
होय, तो ते सीधेसीधुं संपादकने जणाववा निमंत्रण छे. परंतु संपादकने
जणाववाने बदले खोटी रीते गेरसमज फेलावीने आत्मधर्मना विकासने
नुकशान पहोंचे तेवुं कोई न करशो; केमके आ काळमां हजारो जिज्ञासुओने
आधारभूत अने जिणवाणीना प्रचारना सर्वोत्तम साधनरूप आपणुं
‘आत्मधर्म’ ज छे. अने आवा महान कार्यमां रहेली गंभीर जवाबदारीना
बराबर ख्यालपूर्वक खूब ज चीवटथी ने हार्दिक भावनाथी संपादक द्वारा घणां
वर्षोथी तेनुं लेखन–संपादन थाय छे. एमां सहकार आपीने देव–गुरु–धर्मनी
प्रभावनामां साथ आपवो–ते सौनुं कर्तव्य छे.
–ब्र. ह. जैन