दरवाजा खोली नाखो....ने प्रभुना मार्गेर् आगेकदम बढावो.
आवो मजानो अवसर,–तेमां जो तमारा जेवा शूरवीर युवानो एम
कहेशो के ‘अमने आत्मा न ओळखाय ’–अरे, तो पछी जगतमां
आत्माने ओळखशे कोण? ओ जवांमर्द जवानो! ओ बहादूर
आत्माने ओळखवानो छे....ने आत्माने भवदुःखथी छोडाववानो छे. हे
वीरना सुपुत्रो! आ निर्वाणमहोत्सवमां वीरनाथ भगवानने श्रद्धांजलि
चडावतां द्रढ निश्चय करजो के हे वीरनाथ वहालादेव! अमे तमारा
संतान कांई नमाला के पामर नथी, अमे तो वीरसंतान छीए....
वीरतापूर्वक अमेय आत्माने ओळखीने तमारा मार्गमां आवी रह्या
छीए, ने समस्त जैनयुवानो आ ज मार्गमां आवशे. अमारा माटे
आपना मार्ग सिवाय बीजो कोई मार्ग नथी. प्रभो!