Atmadharma magazine - Ank 371
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: द्वि. भाद्र : २५०० आत्मधर्म : १ :
लवाजम वीर सं. २५००
चार रूपिया द्वि. भाद्र
वर्ष ३१ ई. स. 1974
अंक ११ SEPT.
जागो, बहादूर जैनयुवानो जागो! वहाला वीरपुत्रो, जागो!
तमारा आत्माने ओळखीने वीरमार्गमां प्रवेश करो...मोक्षमार्गना
दरवाजा खोली नाखो....ने प्रभुना मार्गेर् आगेकदम बढावो.
अहा, आपणा महावीर भगवानना मोक्षना २५०० वर्षनो एक
महान उत्सव आपणे ऊजवी रह्या छीए. आवो सुंदर जैनधर्म, अने
आवो मजानो अवसर,–तेमां जो तमारा जेवा शूरवीर युवानो एम
कहेशो के ‘अमने आत्मा न ओळखाय ’–अरे, तो पछी जगतमां
आत्माने ओळखशे कोण? ओ जवांमर्द जवानो! ओ बहादूर
वीरांगनाओ! जगतमां अजोड एवा वीरना मार्गने पामीने तमारे ज
आत्माने ओळखवानो छे....ने आत्माने भवदुःखथी छोडाववानो छे. हे
वीरना सुपुत्रो! आ निर्वाणमहोत्सवमां वीरनाथ भगवानने श्रद्धांजलि
चडावतां द्रढ निश्चय करजो के हे वीरनाथ वहालादेव! अमे तमारा
संतान कांई नमाला के पामर नथी, अमे तो वीरसंतान छीए....
वीरतापूर्वक अमेय आत्माने ओळखीने तमारा मार्गमां आवी रह्या
छीए, ने समस्त जैनयुवानो आ ज मार्गमां आवशे. अमारा माटे
आपना मार्ग सिवाय बीजो कोई मार्ग नथी. प्रभो!