Atmadharma magazine - Ank 371
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: २ : आत्मधर्म : द्वि. भाद्र : २५००
अमारा जेवा वीरयुवानो ज आत्मसाधना वडे आपना मार्गने
भरतक्षेत्रमां हजी अढार हजारने पांचसो (१८, ५००) वर्ष सुधी अखंड
धाराए टकावीशुं. आप मोक्ष पधार्या पछी आजे अढी हजार वर्षेय
आपनुं शासन जीवंत छे,–तो अमारा जेवा जैनयुवानो सिवाय बीजुं
कोण छे के जे आ मार्गमां चालशे! प्रभो! अमे ज आपना वारस छीए,
ने अमे आपना मार्गमां आत्मसाधना करशुं–करशुं–करशुं, ए अमारी
प्रतिज्ञा छे.
‘अमे तो जिनवरना संतान...जिनवरपंथे विचरशुं. ’
वाह! बहादूर युवानबंधुओ–बहेनो! धन्य छे तमारी वीरताने!
तमारी प्रतिज्ञा शीघ्र पूरी करो ने वीरशासनने जगतमां शोभावो.
वीतरागता साधर्मीप्रत्ये
परम
साची क्षमा. वात्सल्य हो.
ऋषभ–महावीर
अढीहजारवर्ष पहेलांं, आपणा शासननायक वीरनाथ भगवान
रत्नत्रयरूप वीतराग–मोक्षमार्ग बतावीने सिद्धपदने पाम्या. प्रभुए
बतावेलो आवो सुंदर मार्ग श्री गुरुप्रतापे आजे पण आपणने मळ्‌यो
छे. आ मार्ग आपणने क्रोधादि दुःखभावोथी छोडावीने, चैतन्यना
अपूर्व शांत भावोनो स्वाद चखाडे छे–ए ज अपूर्व क्षमाधर्मनी
आराधना छे.
आवी आराधनामां एकबीजाने आनंदथी साथ आपीए
एवी उत्तम भावना सहित क्षमा.क्षमा!