Atmadharma magazine - Ank 371
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: द्वि. भाद्र : २५०० आत्मधर्म : ३ :
सर्वज्ञ महावीरना अतीन्द्रियज्ञानो दिव्य महिमा
[सर्वज्ञनो निर्णय ते धर्मनुं फळ]
हे जीवो! हे उत्साही मुमुक्षुओ! भगवान महावीरना २५००
वर्षीय निर्वाणमहोत्सवनी उजवणीना आ मंगलप्रसंगे सर्वज्ञ–
महावीरना चेतनमयी आत्माने द्रव्य–गुण–पर्यायरूपे बराबर
ओळखो, तेमना जेवा चेतनस्वभावी आत्मानो निर्णय करीने,
तेना अनुभववडे सम्यक्त्व प्रगट करीने वीरनाथना मोक्षमार्गमां
प्रवेश करी ल्यो...ने महा आनंदथी मोक्षनो मंगल उत्सव ऊजवो.
सर्वज्ञताना गंभीर रहस्योने खोलीने, तेनो निर्णय करवा उपर जोर
देतां गुरुदेव कहे छे के –
अतीन्द्रिय महा आनंदनुं अविनाभावी एवुं अतीन्द्रिय दिव्यज्ञान,–के जे जीवनो
स्वभाव छे, तेनो परम महिमा आचार्यदेवे प्रवचनसारमां प्रसिद्ध कर्यो छे, अने तेने
ईष्ट–अभिनंदनीय–प्रार्थनीय कह्युं छे.
–आवा अतीन्द्रियज्ञाननुं स्वरूप नक्की करवा जाय त्यां जीवनो उपयोग रागथी
छूटीने अंदर अतीन्द्रिय ज्ञानस्वभावमां तन्मय थई जाय छे. रागमां जेनो उपयोग
तन्मय होय ते जीव, राग वगरना अतीन्द्रियज्ञाननो साचो स्वीकार करी शकतो नथी;
एटले अतीन्द्रिय एवा केवळज्ञाननो निर्णय, तेनो स्वीकार अतीन्द्रियभावरूप
सम्यक्त्ववडे ज थाय छे; ने तेथी साथे अतीन्द्रियआनंदनो स्वाद पण होय छे.
आ रीते सर्वज्ञनो निर्णय ते जैनधर्मनुं मूळ छे.
अहो, क्षायिकज्ञाननुं परम माहात्म्य सर्वोत्कृष्ट छे. एनी ताकातनी शी वात?
जेने काळ के क्षेत्रनुं अंतर नडतुं नथी. अनंतकाळ पहेलांंनी के अनंतकाळ पछीनी जे पर्यायो
अत्यारे विद्यमान नथी, जेनुं अत्यारे अस्तित्व नथी, तेने पण ज्ञाननी दिव्यताकात वडे