Atmadharma magazine - Ank 371
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: ४ : आत्मधर्म : द्वि भाद्र : २५००
वर्तमानमां ज्ञेय बनावी ल्ये छे. वर्तमान विद्यमान पर्यायने जेम प्रत्यक्ष जाणे छे तेम
अवर्तमान पर्यायो (–के जे अत्यारे विद्यमान नथी) तेमने पण वर्तमानमां प्रत्यक्ष
जाणी ल्ये छे.–अहो, आवी ताकातवाळा ज्ञाननो निर्णय करे त्यां राग अने ज्ञाननुं
अत्यंत भिन्नपणुं थई जाय छे.
रागना कोई पण कणियाने ज्ञानमां भेळवे तो ज्ञाननी अतीन्द्रिय दिव्यताकात
रही शके नहि. सर्वज्ञताने पामेला ज्ञानमां पूर्ण आनंद छे पण रागनो कोई कणियो
नथी, एवा ज्ञानने स्वीकारनारुं श्रुतज्ञान पोते पण रागथी जुदुं पडीने केवळज्ञानने
बोलावी रह्युं छे: हे केवळज्ञान! आव.....आव! ’ अने, स्वानुभवना बळे केवळज्ञान
पण अंदरथी जवाब आपे छे के–आवुं छुं....आवुं छुं.....आवुं छुं.
जुओ तो खरा आत्मानो स्वभाव!
ज्ञान वधीवधीने पूर्ण थतां रागनो सर्वथा अभाव करी नांखे छे; पण रागमां
एवी ताकात नथी के राग वधतां–वधतां ज्ञाननो सर्वथा अभाव थई जाय ने आत्मा
जड थई जाय; चेतनपणुं तो सदाय रहे छे.
अरे जीव! तारो चेतनस्वभाव तो जो! आवा चेतनस्वभावने राग साथे
भेळसेळपणुं थई शके नहि. आवा ज्ञाननुं पूरुं परिणमन थतां अतीन्द्रिय महान
आनंदने भोगवतुं जे केवळज्ञान प्रगट्युं, तेनो सर्वोत्कृष्ट महिमा कुंदकुंदस्वामीए एवो
अद्भुत गायो छे के तेनो महिमा जेने लक्षमां आवे तेने राग साथे एकताबुद्धि
त्रणकाळ त्रणलोकमां रहे नहि, तेने तो रागथी भिन्न चैतन्यनो अनुभव थईने निश्चय
सम्यग्दर्शन थई जाय छे.–ए धर्मीना अनुभवनी वात छे. अज्ञानीना ज्ञानमां
सर्वज्ञतानो दिव्यमहिमा समाई शके नहि; तेथी कह्युं छे के हे सर्वज्ञ महावीरदेव!
मिथ्याद्रष्टिनुं चित्त आपने पूजी शकतुं नथी, ते आपने ओळखी ज शकतुं नथी तो पूजे
कई रीते? सर्वज्ञपणे आपने ओळखीने सम्यग्द्रष्टि ज आपने पूजी शके छे. अरे,
सर्वज्ञतानी पूजा रागवडे केम थाय! चैतन्यचमत्कार ज्ञानमां आवे ते ज्ञानपर्याय तो
रागथी छूटी पडी गयेली होय छे. वाह! केवळज्ञाननी ताकातनी तो शी वात!–पण ते
केवळज्ञानने स्वीकारनारा मतिश्रुतनी ताकात पण रागथी पार अतीन्द्रिय ताकातवाळी
छे, आखा चैतन्यस्वभावनो तेणे स्वीकार कर्यो छे ने केवळज्ञानीना महान
अतीन्द्रियसुखनो नमुनो तेणे चाखी लीधो छे. हवे अल्पकाळमां ते आगळ वधीने
केवळज्ञान थवानुं छे.