Atmadharma magazine - Ank 371
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: २६ : आत्मधर्म : द्वि. भाद्र : २५००
बस,–रात पडी....नगरीना दरवाजा बंध थई गया..
सवार पडी...नगरीना दरवाजा एवा जडबेसलाक थई गया के कोई रीते खूल्या
नहि. नगररक्षक मुंझायो ने राजाने वात करी. राजाने पण रात्रे स्वप्न आव्युं ज हतुं के
नगरीना दरवाजा बंध थई जशे ने कोई शीलव्रती स्त्रीनो पग अडशे त्यारे ज ते खुलशे.
अनेक स्त्रीओ आवी पण दरवाजा तो न खुल्या. छेवटे राजानी आज्ञाथी
मंदिरमांथी नीलाबेनने बोलाव्या....नमस्कारमंत्रना जाप जपती नीलीबेन आवी ने
तेना पगनो स्पर्श थतां ज दरवाजा खुली गया...तेना शीलनो आवो प्रभाव देखीने
सर्वत्र जयजयकार थई गयो ने तेनुं कलंक दूर थयुं. सागरदत्त वगेरेए पण प्रभावित
थईने तेनी क्षमा मांगी; अने जैनधर्म अंगीकार करीने पोतानुं हित कर्युं.
त्यारबाद ते शीलव्रती नीलादेवी संसारथी विरक्त बनीने अर्जिका थई...
राजगृहीमां समाधि–मरण कर्युं....त्यां आजे पण एक स्थान नीलीबाईनी गूफा तरीके
प्रसिद्ध छे, ने जगतने शीलनो महिमा देखाडी रह्युं छे.
एवी ज रीते महासती सीताजीने पण शीलरत्नना प्रभावे अग्निकुंड पण
कमलनुं सरोवर बनी गयुं–ते वात जगप्रसिद्ध छे.
धर्मात्मा शेठ सुदर्शननी शीलद्रढता पण जगतने माटे एक उत्कृष्ट उदाहरण छे.
कामदेव जेवा तेमना रूपथी मोहित थयेली कामांध राणीए तेमने शीलथी डगाववा
अनेक विकारचेष्टाओ करी, पण शीलना मेरू–सुदर्शन तो अचल ज रह्या. अतीन्द्रिय
भावनाना अतूट किल्लावडे ईन्द्रियविषयोना प्रहारोथी आत्मानी रक्षा करी....वाह,
सुदर्शन...धन्य तारुं दर्शन!
कामांध राणीए क्रोधित थईने सुदर्शन उपर पोतानुं शीयळ लूंटवानो भयंकर
जूठो आरोप नांख्यो; भले नांख्यो...पण अडग सुदर्शनने शुं? ए तो वैराग्य–
भावनामां मग्न छे ने प्रतिज्ञा करी लीधी छे के आ उपसर्ग दूर थाय तो गृहवास
छोडीने मुनि थई जवुं.–वैराग्यलीन ए महात्माने दुष्ट राणी उपर क्रोध करवानीये
फुरसद क््यां हती!
राणीनी बनावटी वातने सत्य मानीने राजाए तो सुदर्शनने शूळी उपर
परोवीने मोतनी सजा करी....शीलने खातर प्राणांतनो प्रसंग आव्यो...भले आव्यो....
राजसेवको