प्रतापे दैवी चमत्कार थयो....आकाशमांथी फूल वरसवा मांडया...पृथ्वी फाटीने शूळीना
स्थाने सिंहासन बनी गयुं...तलवार चलावनारना हाथ हवामां ज चोंटी गया...
आकाशमां देवो शेठ सुदर्शनना शीलनो जयजयकार करवा लाग्या...
राजाए शेठनी क्षमा मांगी...ने मानसहित नगरीमां पधारवा प्रार्थना करी. पण
करीने केवळज्ञान पामीने मोक्ष पधार्या.
ईन्द्रसभामां प्रशंसा थई हती; देवे तेमना शीलनी परीक्षा करी हती छतां तेओ डग्या न
हता; तेमना शीलनो महिमा पण पुराणोमां प्रसिद्ध छे.
कुशीलनुं सेवन करवाथी जे विषयांध जीवो महान दुःखने पाम्या एवा पापी
अन्य स्त्रीने बदले पोतानी माताने ज भोगवी; पछी खबर पडवा छतां पण ते दुष्ट–
कामांध पापीजीव दररोज पोतानी माता साथे कुकर्म करवा लाग्यो. अंते राजाने खबर
पडतां तेने भयंकर शिक्षा करी, ने ते दुष्ट मरीने दुर्गतिमां गयो.–आवा पापी विषय–
लुब्ध जीवो नरके न जाय तो बीजे क्यां जाय?
छे. आम कुशीलसेवनमां पापथी दुर्गतिनां महान दुःखो जाणीने हे भव्य जीवो! तमे ते
पापने छोडो, ने उत्तम शीलनुं सेवन करो.