Atmadharma magazine - Ank 371
(Year 31 - Vir Nirvana Samvat 2500, A.D. 1974)
(Devanagari transliteration).

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: द्वि. भाद्र : २५०० आत्मधर्म : २७ :
शेठने शूळीना स्थाने लई गया...बस, हवे शूळी उपर चडावे छे...त्यां तो, शीलना
प्रतापे दैवी चमत्कार थयो....आकाशमांथी फूल वरसवा मांडया...पृथ्वी फाटीने शूळीना
स्थाने सिंहासन बनी गयुं...तलवार चलावनारना हाथ हवामां ज चोंटी गया...
ए आ शुं!
आकाशमां देवो शेठ सुदर्शनना शीलनो जयजयकार करवा लाग्या...
राजाए शेठनी क्षमा मांगी...ने मानसहित नगरीमां पधारवा प्रार्थना करी. पण
संसारथी विरक्त शेठ सुदर्शन तो त्यां ज दीक्षा लईने मुनि थया.
मुनि थया पछी पण तेमना शीलनी अनेक कसोटी थई पण तेओ अडग रह्या,
उपद्रव थयो तोपण आत्मानी साधनाथी न डग्या...ने अंते संपूर्ण अतीन्द्रियभाव प्रगट
करीने केवळज्ञान पामीने मोक्ष पधार्या.
पटणा शहेरमां तेमनुं सिद्धिधाम आजेय तेमना गुणगान जगतमां प्रसिद्ध करी
रह्युं छे.
महाराज भरतचक्रवर्तीना सेनापति, अने हस्तिनापुरना राजा जयकुमार (ते
श्रेयांसकुमारना भाई जे सोमप्रभ राजा तेना पुत्र) तेमना शीलव्रतनी पण
ईन्द्रसभामां प्रशंसा थई हती; देवे तेमना शीलनी परीक्षा करी हती छतां तेओ डग्या न
हता; तेमना शीलनो महिमा पण पुराणोमां प्रसिद्ध छे.
बीजा पण अनेक धर्मात्मा शीलवंत थया, ते बधानो महिमा कोण कही शके?
कुशीलनुं सेवन करवाथी जे विषयांध जीवो महान दुःखने पाम्या एवा पापी
जीवोमां यमपाल कोटवाल प्रसिद्ध छे. ते कामांध जीवे एकवार रातना अजाणतां कोई
अन्य स्त्रीने बदले पोतानी माताने ज भोगवी; पछी खबर पडवा छतां पण ते दुष्ट–
कामांध पापीजीव दररोज पोतानी माता साथे कुकर्म करवा लाग्यो. अंते राजाने खबर
पडतां तेने भयंकर शिक्षा करी, ने ते दुष्ट मरीने दुर्गतिमां गयो.–आवा पापी विषय–
लुब्ध जीवो नरके न जाय तो बीजे क्यां जाय?
विषयांध राजा रावण नरके गयो–ए वात पण प्रसिद्ध छे. अत्यंत वैराग्यभरेली
यशोधर कथामां पण, कुशीलवंती विषयांध अमृताराणी पण छठ्ठी नरके गई–तेनुं वर्णन
छे. आम कुशीलसेवनमां पापथी दुर्गतिनां महान दुःखो जाणीने हे भव्य जीवो! तमे ते
पापने छोडो, ने उत्तम शीलनुं सेवन करो.